सिनेमा 70mm मुंबई । Review By ActAbhi –
डॉक्टर ,फार्मा कंपनियां और सरकारी बाबुओं का मकड़जाल, जब अपने फायदे के लिए जनता की जान का सौदा करने लगे ,तो उस स्थिति की कल्पना करने भर से सिहरन हो उठती है । जिनको हम भगवान का स्वरुप मान कर आँख मूद कर भरोसा करके उनकी दी हुई दवाइयों को खा लेते है। जबकि वही लोग जनता के भरोसे का खून कर, पैसों की भूख मिटाने के लिए उनकी जान लेने से भी नहीं चूकते। ऐसे अत्याचार के खिलाफ उस बिक गए सिस्टम से, एक ऐसी चिंगारी निकलती है जो भ्रष्टाचार से सड़ चुके सिस्टम को जला कर राख कर देती है । फार्मा कंपनियां और उनके बीच सबसे पहले दवा मार्केट पर कब्ज़ा करने की होड़ के चलते कैसे सरकारी बाबुओं के साथ मिलकर जनता को मौत बाटने के खेल चलता है उस सच्चाई को दिखती है पिल ।
कहानी – फॉरएवर फार्मा देश की नामी कम्पनी है एक दिन फार्मा कंपनी के प्लांट पर मेडिकल अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के छापा पड़ता है और वहां का कर्मचारी छापे के दौरान एक फाइल को कचरे में फेंक देता है। टीम वापस लौट जाती है। फार्मा कंपनी के प्लांट पर कुछ नहीं मिलता है। पत्रकार नूर को फॉरएवर फार्मा की मेडिकल ट्रायल में फेल एंटीबायोटिक दवा की फाइल मिल जाती है। नूर बहुत से डॉक्टरों से उस फाइल के बारे में जानकारी लेता है। एक डॉक्टर नूर को मिली इस फाइल के बारे में फार्मा कम्पनी को खबर दे देता है। कंपनी के गुंडे नूर की पिटाई कर उससे फाइल छीन लेते है। एक बाद नूर सोशल मीडिया पर इस बारे में एक पोस्ट डालता है। उसके इस पोस्ट से सारी जगह खलबली मच जाती है। मेडिकल अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के डॉ प्रकाश और उनकी टीम भी यह पोस्ट देखती है। नूर जब डॉ प्रकाश से मिलता है तो वो सारा किस्सा बताता है। इसके बाद प्रकाश और उसकी टीम कई बार फॉरएवर फार्मा के प्लांट पर छापा मारने के लिए अपने सीनियर से परमिशन मांगते है। लेकिन फार्मा कंपनी और मेडिकल अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के सारे अधिकारी आपस में मिले होते है। डॉ प्रकाश अपनी साथी गुरमीत के साथ बिना सरकारी परमिशन के फार्मा कंपनी की दवाइयों का टेस्ट करते है। टेस्ट में दवाईया फेल हो जाती है। डॉ प्रकाश इस गठजोड़ के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ते है।
स्क्रीनप्ले – सीरीज़ का स्क्रीनप्ले ठीक ठाक है। इसको कहानी के हिसाब से प्रासंगिक बनाने की कोशिश की गई है। बीच बीच में एपिसोड थोड़े स्लो हो जाते है। एक्शन की कमी महसूस होती है।थोड़ा अगर एक्शन डाला गया होता तो एपिसोड और रोचक हो सकते थे । सीरीज़ में नाटकीय उतार चढ़ाव की कमी दिखाई देती है। जैसे नूर से गुंडे उसके ऑफिस के बाहर फाइल छीनने वाले सीन को थोड़ा और ड्रामेटिक बनाया जा सकता था।
अभिनय – रितेश देशमुख पिल से अपना OTT डेब्यू कर रहे है। इस हिसाब से उनका डेब्यू अच्छा रहा। एक सरकारी विभाग में होते हुए अपने विभाग और फार्मा माफिया की साठ गांठ को सबके सामने लाने वाले व्हिसल ब्लोअर डॉ प्रकाश का किरदार अच्छी तरह निभाया है। अन्य किरदारों की बात करे तो पवन मल्होत्रा एक अच्छे अभिनेता है और उन्होंने ब्रह्मा गिल के किरदार को बखूबी निभाया है। नूर पत्रकार के किरदार में अक्षत चौहान और गुरसिमरन अंशुल चौहान ने अपने रोल में अच्छा काम किया है । निखिल खुराना ने एकम का किरदार निभाया है। जीजा जी छत पर हैं में निखिल ने अच्छी कॉमेडी की थी । एकम के सीरियस किरदार में वो अच्छे लगे हैं ।बाक़ी सभी एक्टर ने अच्छा काम किया है।
निर्देशन – इस सीरीज का निर्देशन राजकुमार गुप्ता ने किया है । सबसे पहले ऐसी कहानी को लेकर सीरीज बनाना इसके लिए उनको क्रेडिट देना पड़ेगा । निर्देशन की बात करें तो इस तरह के क्राइम ड्रामा में अगर थोड़े फाइट सीन होते तो अच्छा होता । राज की टीम के साथ सबसे बड़ी चुनौती यह है इस सीरीज के दूसरे सीजन को बनाना । पहला सीज़न थोड़ा स्लो है।
कुल मिलाकर देखा जाये तो एक बढ़िया कहानी और जिसमें अच्छे कलाकारों ने काम किया है ।अच्छी कहानी देखने वालों को यह पसंद आएगी ।