समय भास्कर,फ़िरोज़ाबाद। स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय का ट्रामा सेंटर भगवान भरोसे चल रहा है। ईएमओ के ड्यूटी पर समय से न आने के कारण एक घण्टे से अधिक समय तक बाहर एम्बुलेन्स में ही पड़ा रहा शव। जिला एसएनएम चिकित्सालय और सरकारी ट्रामा सेंटर स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय एशोसिएशन से सम्बद्ध होने के बाद जनता ने सोचा था,कि मेडिकल कॉलेज से जुड़ने के बाद अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैय्या होगी। मेडिकल कॉलेज से जुड़ने के बाद डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की फौज तो बढ़ी लेकिन चिकित्सा सेवायें बद से बदतर हो गयी। सरकारी ट्रामा सेन्टर की इमरजेंसी में जिन डॉक्टरों की ईएमओ के रूप में ड्यूटी लगाई जाती है। इनमे से कुछ चिकित्सक ऐसे भी है। जो समय से न आकर एक से डेढ़ घण्टे तक बिलम्ब से आते है। जिसका उदाहरण गुरुवार की अपरान्ह उस समय देखने को मिला,जब एक बृद्ध की मौत हो गय। परिजन शव को प्राइवेट एम्बुलेन्स द्वारा सरकारी ट्रामा सेंटर पहुँचे,लेकिन ड्यूटी पर तैनात
चिकित्सक के मौजूद न होने के कारण मृत बृद्ध का शव एम्बुलेन्स में इसलिये एक घण्टे से अधिक समय तक पड़ा रहा। कि चिकित्सक परीक्षण कर उसे मृत घोषित करे। तब उस शव को पोस्टमार्टम ग्रह में रखवाये, और पुलिस को सूचित कर अग्रिम कार्यवाही शुरू करा सके। लेकिन चिकित्सक जिनकी इमरजेंसी ड्यूटी थी,वह डेढ़ घण्टे बिलम्ब से सरकारी ट्रामा सेंटर पर आये। तब स्वास्थ्य कर्मियों ने उन्हें बताया कि एक वृद्ध का शव एम्बुलेन्स में रखा है। तब चिकित्सक ने परीक्षण के बाद उसे मृत घोषित कर पोस्टमार्टम ग्रह में रखवाया।मामला यही तक सीमित नही है। सरकारी ट्रामा सेंटर में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये अभियुक्तों को डॉक्टरी परीक्षण के बाद पेशी के लिए ले जाया जाता है। लेकिन चिकित्सक के ड्यूटी पर न होने के कारण पुलिसकर्मियो और अभियुक्तो को काफी देर तक इंतजार करना पड़ा। इन सभी मामलों की तरफ स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कोई ध्यान नही है।
सरकारी ट्रामा सेंटर का हाल बेहाल है,यदि कोई महिला या पुरुष किसी विषाक्त का सेवन करके सरकारी ट्रामा सेंटर पहुँचता है। तो ड्यूटी पर तैनात स्वास्थ्यकर्मी उनके तीमारदारों के सामने पुलिस को सूचना भेजने की बात कहकर उनको डराते है,और उनसे अच्छी खासी धनराशि वसूलते है। जब कि नियमानुसार कोई भी महिला या पुरुष कोई विषाक्त खाकर सरकारी ट्रामा सेंटर पहुँचता है। तो प्राथमिकता के आधार पर इसकी सूचना पुलिस को भेजनी चाहिये,परन्तु अब ऐसा नही होता। सारा मामला पैसों के लेनदेन में ही खत्म हो जाता है।इसके अलावा सरकारी ट्रामा सेंटर में पीड़ित रोगियों को इंजेक्शन और ग्लूकोज की बोतल लगाने के लिये इंट्रा केड लगाया जाता है। इसके लगाने के लिये भी स्वास्थ्यकर्मी पैसा वसूलते है।कुल मिलाकर सरकारी ट्रामा सेंटर भगवान भरोसे चल रहा है। पीड़ितों की फरियाद सुनने वाला कोई नही है। निरीक्षण के नाम पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी खाना पूरी करके चलते बनते है।