Cinema70mm Mumbai / Review by ActAbhi -4*/5*
भारतीय सिनेमा के दशा और दिशा बदलने लगी है। जिसमें  छोटी छोटी फ़िल्में आकर दर्शकों को चौका रहीं है।  आज के डिजिटल युग का एक  सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि  दर्शकों को घर पर बैठ कर अच्छी फ़िल्में देखने का मौक़ा मिल जाता है । जिस तरह का सिनेमा अब बन रहा रहा है उससे एक बात तो तय है कि भारतीय  सिनेमा के स्तर को विश्व पटल पर स्थापित करने की दिशा में जो काम चल रहा है।  वो काम सार्थक दिशा में होता दिखाई दे रहा है। छोटे बजट की अच्छी फ़िल्में आ रही है। उनका काम देखा कर  दर्शक भी कह उठेंगे की क्या बात !

मेरी  इन बातों से कहीं आप बॉलीवुड के बारे में तो नहीं सोचने लगे।  तो में आपको बता दूँ की मैं  बात कर रहा हूँ भारतीय सिनेमा की न की बॉलीवुड की।  वैसे बॉलीवुड वालों की तो नैया डूब रही है और कोई और इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। हिन्दी फिल्मों को लेकर जिस तरह की सोच का विस्तार हो रहा है ।  उस कारण ऐसा होना तो तय है । ऐसी बात मैं  नहीं सारे लोग कह रहे हैं।

तमिल की फिल्म महाराजा रिलीज़ हो चुकी है। फिल्म हिंदी में भी उपलब्ध है। इस फिल्म को देखने के बाद एक बात सामने निकल के आती है कि एक अच्छी फिल्म  बनाने के लिए ज्यादा ताम झाम की  जरुरत नहीं होती है। जरुरत होती है बस अपनी मिट्टी की खुश्बू को पहचानकर अपनी बात को ईमानदारी से कहने की । मेहनत और लगन की  । सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है। महाराजा एक शानदार फिल्म जिसको देख कर आप अपने  इमोशन को रोक नहीं पाएंगे।

कहानी – महाराजा पेशे से नाई हैं और चेन्नई में रहता हैं। एक  दिन महाराजा के घर लूट हो जाती है। महाराजा स्थानीय पुलिस स्टेशन में लूट की रिपोर्ट करने जाते हैं, और पुलिस को बताता हैं कि उसके घर का डस्टबिन चोरी हो गया है जिसका नाम लक्ष्मी है । मेरी बेटे का वो फ़ेवरेट है । महाराजा पूरी घटना पुलिस को बताता है कि एक हथियारबंद गिरोह ने उनके घर पर धावा बोला, और लक्ष्मी को ले गए। पुलिस वाले महाराजा की बात पर हसते हैं और उसको वहां से भगा देते है। एक डस्टबिन के लिए पुलिस अपना समय बर्बाद करेगी। पुलिस वाले बार बार महाराजा को पुलिस स्टेशन से भगा देते है लेकिन वो हार नहीं मानता है । महाराजा पुलिस वालों को  5 लाख रुपये की रिश्वत देने के लिए कहता तब पुलिस वाले अपना काम शुरू करते है और एक पुराना डस्टबिन खोजने में  लग जाते है ।

महाराज की बेटी स्कूल के कैंप में गई है और वो जाते समय लक्ष्मी का ध्यान रखने के लिए कह कर जाती है। पुलिस डस्टबिन केस की जांच करते करते एक नए मोड़ पर पहुंच जाती है। और उनको पता चलता है की डस्टबिन के पीछे की असली कहानी क्या है । वहीं सेल्वम और सबरी लुटेरें है । जो घरों में  लूटपाट करने के बाद महिलाओं का बलात्कार करता है और उन्हें मार डालता है। एक दिन  सबरी ,सेल्वम को यह बताने के लिए फोन करता है कि एक अखबार ने उनकी पहचान बताए बिना उनके अपराधों पर एक खबर  प्रकाशित किया है। आखिर में महाराजा को उसका डस्टबिन मिल जाता है और पुलिस भी राहत की सांस लेती है।

स्क्रीनप्ले – बात करें स्क्रीनप्ले की तो फिल्म देखने के बाद इसके लिए एक ही शब्द आता  वो है शानदार।  फिल्म की कहानी और इसका स्क्रीनप्ले निथिलन स्वामीनाथन ने लिखा है।  एक्शन थ्रिलर फिल्म का स्क्रीनप्ले दर्शकों को चौकाता रहेगा। कहानी अपने वर्तमान में चलती है और फिर फ्लैशबैक में चलने लगती है। आपको कुछ अटपटा नहीं लगेगा ।  फिल्म दर्शकों को हिलने का मौका नहीं देती है।  इस फिल्म का क्लाइमैक्स के लिए फिर से शानदार। कुल मिला कर कह सकते है । महाराजा एक अच्छी फिल्म है ।

निर्देशन – फिल्म का निर्देशन निथिलन स्वामीनाथन ने किया है।  निथिलन ने फिल्म  कहानी और  स्क्रीनप्ले भी लिखा है।  निथिलन  ने  कुरंगु बोम्मई क्राइम थ्रिलर फिल्म से शुरुआत की थी। महाराजा फिल्म का  निर्देशन इसके  डायरेक्टर की काबिलियत साबित करता है ।अगर फ़िल्म के निर्देशक ने  फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा हो तो उस फिल्म का निर्देशन करना सजह हो जाता है। जिस समय लेखक कहानी को कागज पर उकेरना शुरू करता है । लेखक ही अगर निर्देशक भी हो तो इसका फायदा फ़िल्म को मिलता है  ।  निथिलन  ने एक अच्छी फिल्म बनाई है जो काफी समय तक याद रखी जाएगी।

एडिटिंग – इस फिल्म की एक और खासियत है वो है इस फिल्म की एडिटिंग।  फिर से एक शब्द वो है शानदार।  इस फिल्म की एडिटिंग  फिलोमिन राज ने की है। जिस तरह एक अच्छी फिल्म  बढ़िया स्क्रीनप्ले से शानदार बनती है । उसी तरह अच्छी  एडिटिंग फ़िल्म को एक पायदान ऊपर ले जाती है । फिलोमिन राज की एडिटिंग ने जिस तरह कहानी को पेश किया है। वो काबिले तारीफ है।

एक्टिंग – इस फिल्म में विजय सेतुपति ने मुख्य भूमिका निभाई है। विजय एक अच्छे एक्टर है। उन्होंने इस फिल्म में काफी अच्छा काम किया है। एक पिता जिसकी बेटी के साथ गलत हो गया है। उसके लिए न्याय पाने के लिए उसकी तड़प को उसके चेहरे पर साफ़ देखा जा सकता है।विजय इसको निभाने में सफल नज़र आते है। अक्सर एक बात कही जाती है वो है कि अगर एक्टर के पास डायलॉग नहीं है तो वो एक्टिंग क्या करेगा ? लेकिन विजय ने कम संवाद के बाद भी अभिनय में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हिंदी फिल्मों के जाने माने निर्देशक अनुराग कश्यप ने इस फिल्म में मुख्य विलेन सेल्वम का किरदार निभाया है। एक्टिंग की बात करें तो अनुराग कुछ खास करते दिखाई नहीं दिए है।अनुराग एक्टिंग के लिए हाथ पैर मारते दिख रहे हैं । अनुराग अपने अभिनय से सेल्वम के किरदार में कुछ खास जोड़ते दिखाई नहीं दिये।  फ़िल्म का क्लाइमेक्स में अनुराग कश्यप को एक नौसिखिया एक्टर कहा जा सकता है।अगर  फ़िल्म के अंत में कोई अच्छा एक्टर होता जैसा की अनुराग की फ़िल्में में दिखाई देते थे ।तो यह फिल्म एक पायदान ऊपर पहुँच जाती ।  बाकी सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है।

फिल्म क्यों देखें – फिल्म महाराजा को विजय सेतुपति के अभिनय , फिलोमिन के संपादन, स्वामीनाथन की पटकथा और निर्देशन के लिए देखें।  एक बात और इस फिल्म के क्लाइमेक्स के लिये लिए भी। अंत में शानदार।

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