विभिन्न मांगों को लेकर 28 सितंबर को आगरा कमिश्नरी पर विहप की अगुवाई में हिंदू समाज करेगा प्रदर्शन

हिंदू समाज की आस्था के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं – मुकेश शुक्ला

मथुरा। देश में विभिन्न सरकारी मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण की आड़ में हो रहे हिंदू आस्था से खिलवाड़ पर आक्रोश व्यक्त करते हुए विश्व हिंदू परिषद के प्रांत सह मंत्री मुकेश शुक्ला ने कहा कि सरकारें मंदिरों को तत्काल सरकारी नियंत्रण से मुक्त करें। उन्होंने कहा कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग को लेकर विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में 28 सितंबर को आगरा कमिश्नरी पर हिंदू समाज प्रदर्शन करेगा। उन्होंने हिंदू समाज के लोगों से अधिक से अधिक संख्या में 28 सितंबर को आगरा पहुंचने की अपील की।
हिंदू समाज द्वारा मंदिरों में दिए वाले जाने वाले चढ़ावे की धनराशि को हिंदू विरोधी कार्यो में प्रयोग किए जाने की चर्चाओं के बीच उन्होंने इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है।

विश्व हिंदू परिषद के प्रांत सह मंत्री मुकेश शुक्ला ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो प्राचीन काल से अपनी धार्मिक विविधता और आस्थाओं के लिए जाना जाता है। सनातन धर्म की जड़ें इस देश की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में गहरी हैं। इस पवित्र भूमि पर हजारों सालों से मंदिर, धर्मशालाएं, और आश्रम लोगों की धार्मिक आस्था और सामाजिक सेवा के केंद्र रहे हैं। लेकिन वर्तमान समय में एक विचित्र और चिंताजनक स्थिति देखी जा रही है: भारत के अधिकांश प्रमुख मंदिरों पर सरकार का सीधा नियंत्रण है,और इसके परिणामस्वरूप कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

सरकारी नियंत्रण का यह सिलसिला अंग्रेजी शासन के समय शुरू हुआ जब मंदिरों और उनके धन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए नीतियां बनाई गईं। इसका उद्देश्य मूलतः मंदिरों की सम्पत्तियों लूटकर ब्रिटेन ले जाना और श्रद्धालुओं से वसूली करना था, लेकिन समय के साथ यह नीति और ज्यादा दमनकारी प्रणाली में बदल गई,जिसमें भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अनियमितताएं पनपने लगीं। आजादी के बाद भी इस प्रणाली को बदलने के बजाय सरकारों ने मंदिरों पर अपना नियंत्रण बरकरार रखा और इसे और भी व्यापक बना दिया।

यहां यह गौर करने वाली बात है, कि दुनिया के किसी भी धर्म के धार्मिक स्थलों पर इस प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप नहीं देखा जाता। भारत में भी मस्जिदों, चर्चों जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। ये धार्मिक स्थल स्वतंत्र रूप से अपने अनुयायियों के चढ़ावे और सम्पत्तियों का प्रबंधन करते हैं। लेकिन मंदिरों के मामले में सरकार ने एक अलग ही नीति अपनाई है। यह स्पष्ट रूप से सनातन धर्म और इसके अनुयायियों के प्रति भेदभाव है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि मंदिरों पर आने वाले दान और चढ़ावे का उपयोग धार्मिक कार्यों के बजाय, सरकार अपने अन्य खर्चों के लिए करती है। तिरुपति बालाजी, श्रीपद्मनाभस्वामी और अन्य बड़े मंदिरों में भक्तों द्वारा दान किया गया धन न केवल धार्मिक कार्यों के लिए बल्कि सरकार के प्रशासनिक खर्चों और गैर-धार्मिक उद्देश्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है। यह न केवल धार्मिक आस्था का अपमान है, बल्कि भक्तों की भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ है। इस धन का एक हिस्सा अन्य धर्मों के प्रचार और विकास में भी लगाया जाता है, जो पूर्णतः अनुचित है।

हाल ही में तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद में अशुद्धता पाए जाने की घटना ने देशभर में सनातन धर्म के अनुयायियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि सरकारी नियंत्रण ने मंदिरों के प्रशासन और धार्मिक परंपराओं को किस हद तक क्षति पहुंचाई है। प्रसाद का शुद्ध और पवित्र होना हमारी धार्मिक परंपरा का अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन सरकारी हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार ने इस पवित्रता को भी प्रभावित किया है। तिरुपति मंदिर के प्रशासन पर सरकार का सीधा नियंत्रण होने के कारण इस घटना का प्रमुख कारण भी सरकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार ही है।

मंदिरों के धन और प्रशासन पर सरकारी नियंत्रण के कारण भ्रष्टाचार की घटनाएं बार-बार सामने आती रहती हैं। मंदिरों की सम्पत्तियों का गलत तरीके से उपयोग, पुजारियों और कर्मचारियों का वेतन न मिलना, और धार्मिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होना ये सब सरकारी हस्तक्षेप का ही परिणाम हैं। राजनेता और नौकरशाह इन मंदिरों के धन का निजी लाभ के लिए दुरुपयोग करते हैं, जिससे मंदिरों की पवित्रता और अनुशासन भंग हो जाता है।अब समय आ गया है कि अन्याय को समाप्त किया जाए। भारत के सभी मंदिरों से सरकारी नियंत्रण तुरंत हटाना आवश्यक है ताकि वे स्वतंत्र रूप से अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन कर सकें और भक्तों के द्वारा दान किए गए धन का सही उपयोग हो सके। मंदिरों का धन धर्म, शिक्षा,और सामाजिक कल्याण के कार्यों में लगाया जाना चाहिए, न कि सरकारी खर्चों और अन्य धर्मों के प्रचार में।

सनातन धर्म एक शाश्वत धर्म है, और इसके मंदिर इस धर्म की धरोहर हैं। मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण न केवल धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है, बल्कि यह हमारी आस्था और परंपराओं का अपमान भी है। यदि हम अपनी धार्मिक धरोहर को सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो हमें एकजुट होकर सरकार पर दबाव बनाना होगा कि वह मंदिरों से अपना नियंत्रण हटाए और उन्हें स्वतंत्र रूप से संचालित होने दे। केवल तभी हमारी आस्था और धार्मिक परंपराओं की पवित्रता बनी रह सकेगी, और मंदिर अपनी असली भूमिका निभा पाएंगे: समाज की सेवा और धर्म का प्रचार।उन्होंने तिरुपति मंदिरके घटनाक्रम का उदाहरण देते हुए कहा कि 28 सितंबर को आगरा कमिश्नरी पर विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में हिंदू समाज मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग को लेकर प्रदर्शन करेगा। उन्होंने हिंदू समाज के लोगों से अधिक से अधिक संख्या में 28 सितंबर को आगरा पहुंचने की अपील की।

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