Cinema 70mm Mumbai / Review By ActAbhi – 1.5*/5*

भारतीय हिंदी सिनेमा का स्तर गिरता ही जा रहा है।  जब फिल्म की बात करते है तो सबसे पहले बात होती है उस फिल्म की कहानी की। अब सुनने में आ रहा है कि अंग्रेजों की गुलामी से आज तक ग्रस्त लोग हिंदी सिनेमा की जब कहानी लिखते है तो ऐसे साइड इफ़ेक्ट होते हैं । इस साइड इफ़ेक्ट का एक और दुष्प्रभाव है ।  पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को दिखाती फ़िल्म उलझ ।इसमें इस तरह से दिखाया गया है कि  भारत और  उसका  सारा तंत्र बेहद कमजोर है और उसमें काम करने वाले निहायती बेवक़ूफ़। ऐसे ही मानसिकता से ग्रस्त भारतीय विदेश सेवा और भारतीय रॉ जैसी सेवाओं को जलील करती है फिल्म उलझ। फिल्म को बनाने वालों ने इस फ़िल्म का नाम तो सही में ठीक ही दिया है उलझ ! फिल्म को देख कर लगता है कि  कहानी के  लेखक और निर्देशक अभी भी उसी गुलामी की मानसिकता में जी रहें है। पाकिस्तान का गुणगान कर भारत और उसकी सेवाओं को नीचा दिखाने को ऐसी कहानी लिख रहें है। और बना रहें है ऐसी बाहियात फिल्म उलझ । उलझ एक पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा फिल्म से ज़्यादा कुछ नहीं  है । ऐसी फिल्मों पर सरकार को  कार्यवाही करनी चाहिए ।

कहानी – एक भारतीय विदेश सेवा के प्रतिष्ठित  परिवार की कहानी है । जिसमे सभी लोग इस शानदार सेवा से जुड़े हुए हैं। जिसमे दादा पिता और अब बेटी इस सेवा से जुड़ कर भारत की सेवा कर रही है।  कहानी में जाह्नवी कपूर एक आईएफएस अधिकारी है और उसको पाकिस्तान का एक एजेंट अपने जाल में फसा लेता है जिसे किसी छोटी सी बच्ची को कोई बहला लेता है।  और उस पर दवाव डालकर सारी ख़ुफ़िया जानकारी उससे निकलवा लेते है।  जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अपना स्वतंत्रता  दिवस छोड़ कर भारत के स्वतंत्रता  दिवस पर भारत आते है तो उनको मारने का प्लान बनाया जाता है जिसको जाह्नवी कपूर विफल कर देती है।

स्क्रीनप्ले – इसके लिए एक शब्द है वो है घटिया।  चलिए बात करते हैं इसके स्क्रीनप्ले की कहानी की शुरुआत होती है नेपाल एम्बेसी से जहां पर किसी बात को लेकर युवा आईएफएस अधिकारी जाह्नवी कपूर अपनी होशियारी से नेपाल के विदेश मंत्री को भारत के पक्ष में फैसला लेने पर मजबूर कर देती है। इस बात को लेकर उसको यूनाइटेड किंगडम का उप राजदूत बना दिया जाता है।  अब शुरू होती बेवकूफी और अगले दिन एक पार्टी में जहान्वी कपूर,आईएफएस को एक लड़का मिलता है और वो उसके साथ बिना किसी जानकारी के ,प्रोटोकॉल गया भाड़ में ,एक अनजान इंसान के साथ डेट पर चली जाती है कुछ घंटों की मुलाक़ात के बाद ही और फिर उसका वीडियो बन जाता है। हनी ट्रैप तो सुना था पर हनी ही ट्रैप में फस गई या खुद से फँसने  चली गई। वो पाकिस्तानी एजेंट  जिसके प्यार में एक कम अक्ल आईएफएस अफसर पड़ गई थी।  इतनी आसानी से तो कॉलेज में भी लोग डेट पर नहीं जाते है।  अब वो पाकिस्तानी एजेंट प्यार में पड़ी बेवकूफ  आईएफएस को ब्लैकमेल करता है और वो उसको एक सीक्रेट  फाइल लाने को बोलता है।  वहां पर काम कर रहे रॉ के एजेंट भांग खा कर सो रहे होते है।  किसी को कुछ पता नहीं चलता है।  भारत का विदेश मंत्री से लेकर रॉ के टॉप अफसर तक सब पाकिस्तान के साथ मिले हुए है। भारत में एक टॉप रॉ एजेंट के यहाँ एक ऐसी वाईफाई लगवा दी जाती है  जिसमे कैमरा है और उसको कुछ पता नहीं चलता है।

फिल्म में भारत का पूरा तंत्र सो रहा है। विदेश मंत्री पाकिस्तान के विदेश मंत्री से ऐसे बात करता है जैसे उसका दोस्त हो। जब चाहे फ़ोन कर लो। इतना सब हो रहा है पर भारत के प्रधानमंत्री कार्यालय को कोई खबर तक नहीं है।  पाकिस्तानी एजेंट जहान्वी कपूर को कहता  है कि पाकिस्तान में काम कर रहे रॉ एजेंट का नाम बताओ। और बिना किसी परेशानी के वो नाम देती है। यहाँ पर भी रॉ के लोग सो रहे होते हैं।  फिर जाह्नवी कपूर को आकाशवाणी होती है और वो अपने ड्राइवर के घर पहुंच जाती है और फिर कमाल हो जाता है।  वो बेवक़ूफ़ आईएफएस अधिकारी जेम्स बांड की तरह सारा पर्दा फास करती हुई नई दिल्ली पहुंच कर किलर को मार देते है।  जो भारत आये पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को मारने आता है। गजब तो तब होता है कि वो किलर पाकिस्तानी isi का एजेंट है और भारत के विदेश मंत्री के लिए काम कर रहा है। पूरी फिल्म में लॉजिक नाम की कोई चीज़ ढूंढ़ने से भी दिखाई नहीं देती है। कुछ भी चल रहा है।  लगता तो ऐसा है कि फिल्म के लेखक ने भांग खा कर कहानी लिखी है।  पूरी फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है की भारतीय विदेश सेवा , रॉ , भारत का विदेश मंत्रालय और भारत का पूरा तंत्र बेवक़ूफ़ है।  किसी को कुछ समझ नहीं आता है।  अंत में जब जहान्वी कपूर किलर को मार देती है उसके बाद प्रधानमत्री का कॉल तक आ जाता है लेकिन उसकी इन्वेस्टीगेशन पूरी नहीं होती है। और पूरी फिल्म में सो रही बिल्ली वाली संस्था एक दम से प्रकट होती है और इस बेवक़ूफ़ जेम्स बांड को अपने साथ काम करने को कहती है।  लेखक ने पूरी तरह जानबूझ कर  पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा फ़िल्म लिखी और निर्देशक ने बनाई है ।

निर्देशन – कहानी कब शुरू होती है और क्यों शुरू होती है।पता नहीं ।   कहानी में  भी कभी कुछ भी शुरू हो जाता है ।  कोई कुछ भी कर रहा है कोई भी सीन कहीं से भी शुरू होता है।  कुल मिलाकर कहा जाये तो फिल्म का निर्देशन घटिया और निर्देशक ने लगता है किसी नशे के प्रभाव में आकर फिल्म बनाई है।  फिल्म का निर्देशन सुधांशु सरिया ने किया है।

लेखक – फ़िल्म को परवीज़ शेख, सुधांशु सरिया और अतिका चौहान ने लिखा है ।

अभिनय – अभिनय के लिए इनको शायद ऑस्कर मिल जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी।

फिल्म क्यों देखें – एक घटिया कहानी ,घटिया स्क्रीनप्ले और घटिया निर्देशन।  भारतीय विदेश सेवा को बदनाम करती एक पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा फिल्म।

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