फिल्म समीक्षा – 4/5- खिलाडी के जज्बे को सलाम करती फिल्म
अर्जुन उपमन्यु / Cinema70mm- अजय देवगन ने 22 साल और 5 महीने की उम्र में बतौर एक्टर के रूप में अपने फ़िल्मी सफर की शुरुआत की थी। उन्होंने सन 1991 में आई फिल्म ‘फूल और कांटे’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया। जैसे-जैसे अजय की उम्र बढ़ती गई वैसे ही वैसे अजय का एक्टिंग का ग्राफ काफी ऊंचा होता गया। अजय अब 55 साल के हो चुके हैं और उनकी दीवानगी फैंस के सर चढ़कर बोलती है। उनके फैंस जिस फिल्म का फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। वह फिल्म रिलीज हो चुकी है. और उसे फिल्म का नाम है मैदान। आज हम आपको बताएंगे यह फिल्म कैसी है और यह फिल्म आपको क्यों देखनी चाहिए। –
कहानी
50 और 60 के दशक में भारतीय फुटबॉल टीम को कोच करने वाले सैयद अब्दुल रहीम को भारतीय फुटबॉल टीम का अब तक का सबसे सफल कोच माना जाता है. 50 के दशक में ओलिम्पिक्स में टीम के बेहतर प्रदर्शन और 1962 में एशियन गेम्स में भारत को चैम्पियन बनाने का श्रेय सैयद अब्दुल करीम को दिया जाता है. तंगहाली, प्रशासन की उपेक्षा और बढ़िया खिलाड़ियों के अभाव से जूझ रही भारतीय फुटबॉल टीम को एक बेहतरीन टीम में तब्दील करने का सपना कोई जुनूनी शख्स ही देख सकता है. सैय्यद अब्दुल करीम ऐसे ही एक जुनूनी शख्स का नाम था।
डायरेक्शन
बधाई हो जैसी सफक फिल्म बनाने वाले अमित शर्मा ने फिल्म का निर्देशन किया है। पहले कहानी को उबाऊ और स्लो जाती है। फर्स्ट हाफ इतना बोरिंग है कि आप का ध्यान फ़िल्मी परदे पर से मोबाइल पर और अगल बगल में चला जायेगा । लेकिन इंटरवल के बाद यानी सेकेंड हाफ खासकर के क्लाइमैक्स वाला सीक्वेंस शानदार है। फुटबॉल मैच वाले दृश्यों में सिनेमेटोग्राफी शानदार है, और फिल्म देखते समय ऐसा लगेगा की आप कोई लाइव मैच देख रहें है। अजय देवगन ने सैयद अब्दुल रहीम के रोल में शानदार काम किया है।
अभिनय –
फिल्म में अजय देवगन ने शानदार अभिनय किया है। अजय देवगन अपनी आंखों से एक्टिंग के लिए भारतीय सिनेमा में मशहूर है। इस फिल्म में उन्होंने अपनी आँखों का बखूबी इस्तेमाल किया है । अन्य कलाकारों के बात करें तो उनकी वाइफ के रोल में प्रियामणि ने भी अच्छा काम किया है। स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट भूमिका में गजराज राव बढ़िया लग रहें है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है।
फिल्म की बात करें तो फिल्म काफी अच्छी है फिल्म में फुटबॉल मैच को लेकर कमेंट्री फिल्म में जान डालती है। निर्देशक अमित शर्मा ने अच्छा निर्देशन किया है। फुटबॉल को ध्यान में रख कर फिल्म बनाना काफी चुनौती भरा काम है क्योकि भारत में फुटवॉल इतनी लोकप्रिय नहीं है। और उस पर फिल्म बनाना काफी चुनौती पूर्ण होता है। डायरेक्टर अमित शर्मा ने फिल्म देखने लायक बनाई है। फुटबॉल मैचों के दौरान ऑल इंडिया रेडियो के लिए एक्टर विजय मौर्य और अभिषेक थपियाल द्वारा लगातार ढंग से हिंदी में की जानेवाली जोश भरी कमेंटरी फिल्म को और भी रोचक बनाती है।
‘मैदान’ का फर्स्ट हाफ साधारण और नाटकीय सा लग सकता है लेकिन फिल्म के दूसरे हाफ में जिस ढंग से विपरीत हालात में फुटबॉल मैचों और मैदान पर खिलाड़ियों के संघर्ष को प्रस्तुत करती है । फेफड़ों का कैंसर होने के बावजूद 1962 के एशियन गेम्स में भारत को विजेता बनाने की कोच सैयद अब्दुल करीम की जुनूनी प्रयास फिल्म खत्म होते होते दिल को छू जाती है।