Cinema 70mm Mumbai / Review By ActAbhi – 3*/5* – रिश्ते, हमारे और तुम्हारे रिश्ते । यहाँ  पर हैं , खून के रिश्ते ,प्यार के रिश्ते, नफ़रतों के रिश्ते,  दोस्ती वाले रिश्ते , पड़ोस के रिश्ते,  दूर वालें रिश्ते  । ये सारे रिश्ते होते बड़े नाजुक हैं । इन रिश्तों में उतार है, चढ़ाव है। ऊंच है नीच है।  लड़ाई है झगड़े  हैं। कभी जलन है तो कभी बेशुमार  प्यार है। कभी हसातें है ये रिश्ते तो कभी रुलाते हैं । जिंदगी में होने वाली अधसुनी अधपकी ऐसी या वैसी बातों से बनते बिगड़ते रिश्ते और इन रिश्तों में पनपता अविश्वास है  ये रिश्ते । आखिर में ये रिश्ते है । हमारे जीने का सबसे बड़ा माध्यम भी तो ये रिश्तें ही हैं।  ये न होते तो शायद इंसान के जीवन की कल्पना अधूरी सी होती ।

रिश्तों के उतार चढ़ाव और  उनकी कश्मकश की कहानी फिल्म बिन्नी और फॅमिली

कहानी – इस फिल्म की कहानी लन्दन में रहने वाले भारतीय बिहारी परिवार की है जिसमे माता पिता और उनकी एक बेटी है  ।  लंदन के स्कूल में पढ़ने वाली बेटी।   लंदन में राजेश कुमार अपनी पत्नी चारु और बेटी बिन्नी ( अंजलि धवन ) के साथ रहते है।   राजेश के पिता पंकज कपूर अपनी पत्नी हिमानी शिवपुरी के साथ दो महीने के लिए लंदन में उनके साथ रहने आते हैं। हर बार की तरह बिन्नी को  अपना कमरा अपने दादा दादी के साथ शेयर करना पड़ता है।  इस बात से बिन्नी खुश नहीं है । बिन्नी के पास उसका  अपना कोई अलग कमरा नहीं है। दादा दादी के आने से बिन्नी और उनकी फॅमिली को अपने लन्दन वाले तौर तरीक़ों  को  कुछ दिनों के लिए बदलना पड़ता है।  घर में मंदिर रखना पड़ता है।  बियर बार में किताबें रखनी पड़ती है और बिन्नी के कमरे के गेट पर लटका बोर्ड तक बदलना पड़ता है ।  दादा पंकज कपूर अपने भारतीय संस्कारों को लेकर काफ़ी सख़्त है ।  एक दिन बिन्नी को देर से घर आने पर खूब डाटते हैं। बिन्नी पहले से ही दादा दादी के आने से नाखुश हैं।  दादा दादी वापस भारत  चले जातें  है। एक दिन राजेश को पंकज कपूर का फ़ोन आता है कि उसकी माँ , हिमानी शिवपुरी की तबियत बहुत ख़राब हो गई है।  राजेश अपने पिता को बोलता है कि वो लंदन की टिकट करवा रहा है। आप माँ को लन्दन ले कर आ जाइये।  दादा दादी के आने की खबर से बिन्नी बहुत गुस्सा हो जाती है  ।  राजेश अपने पिता को बिन्नी बोलती है कि पटना में भी तो दादी का इलाज हो सकता है।  लेकिन लंदन क्यों आना है।  इस बात पर राजेश और बिन्नी में बहस हो जाती है।   बिन्नी नाराज़ होकर घर छोड़ कर चली जाती है। इसके बाद राजेश पंकज कपूर को फ़ोन करके झूठ बोलता है कि उसने डॉक्टर से बात कर ली है और डॉक्टर ने बोला है कि पटना में इलाज करवा लो लन्दन आने की कोई जरुरत नहीं है। राजेश बोलता है कि छुट्टी लेकर  पटना आ जाता है।  कहानी अपने अगले पड़ाव पर जाती है।  जहाँ हिमानी शिवपुरी, दादी की मौत हो जाती है।  इस बात से सारे परिवार को बहुत बड़ा सदमा लगता है।  राजेश अपनी पिता पंकज कपूर को अपने साथ लंदन ले जाने का फैसला करता है।  लेकिन कुछ दिनों के बाद।  बिन्नी बोलती है की अपने साथ  दादा को अपने साथ लन्दन ले जाएगी।  इसके बाद शुरू होती है । दादा और पोती के नए रिश्ते की कहानी।  बिन्नी, दादा पंकज कपूर को दादी के मौत के सदमे से निकलने की कोशिश करती है। लेकिन आखिर में दादा और बिन्नी में अच्छी बॉन्डिंग हो जाती है।  लेकिन कहानी में एक समय ऐसा आता है कि  दादा पंकज कपूर एक बात के पता चलने के कारण गुस्से से भारत वापस चले जाते है। इस के कारण  सारी बात बिगड़ जाती है।  आगे क्या होता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

स्क्रीनप्ले –  फिल्म का स्क्रीन काफी कमजोर हैं और फिल्म की शुरुआत ही बड़ी ही बेहूदी आवाज से होती है। इस तरह की शुरुआत की  किसी प्रकार की कोई जरूरत नहीं लगती है। ख़ैर यह काम लेकर और फ़िल्म के निर्देशक का है ।  फिल्म के पहले हाफ को देखा जाये  तो उसमें कुछ नहीं है ।  बिन्नी की फैमिली या कहें कि बिन्नी को दिखाने  के लिए निर्देशक ने फिल्म का पूरा पहला हाफ ले लिया।तो शायद ग़लत नहीं होगा ।पहला हाफ बहुत स्लो है और एक टीवी के सीरियल की तरह लगता है। फिल्म मध्यांतर के बाद शुरू होती है। जब दादी की मौत हो जाती है।   वहां के बिन्नी का बदलाव, अपने दादा के प्रति प्यार, वो भी दादी की मौत के कारण। बिन्नी और दादा की बॉन्डिंग देखकर दर्शकों को अच्छा लगेगा।  फिल्म में कुछ पल ऐसे आते है जो दर्शकों को भावुक कर देते हैं। फिल्म में कुछ जगह दर्शक जरूर हसेंगे। फिल्म की पटकथा जिस तरह लिखी गई है। वो फिल्म कमजोर फिल्म बनाती है।  बिन्नी लन्दन में पढाई कर रही है और उसका अंग्रेजी एक्सेंट भारतीय है।  ऐसा कैसे हो सकता है ? फिल्म के क्लाइमेक्स में बिन्नी अपने दादा पंकज कपूर को जो बात बोलती है वो बाते काफी भावुक करने वाली बातें है लेकिन वो सारे संवाद बिन्नी ने अंग्रेजी में बोले है।  इतना महवपूर्ण संवाद प्रभाव हीन  हो जाता है।  जो स्क्रीन प्ले की बहुत बड़ी कमी है। फिल्म के कुछ संवाद इंग्लिश में है।  एक बात तो  कहना बनता है कि  फिल्म अधपकी है।

अभिनय – फिल्म में पंकज कपूर जैसे बढ़िया अभिनेता है। उन्होंने बहुत अच्छा अभिनय किया है।  फिल्म में राजेश कुमार ने भी अच्छा अभिनय किया है।  जब माँ के बारे में पिता को झूठ बोलना पड़ता है तो जो गिल्ट उनके चहरे पर दिखाता है  वो उनके अभिनय की गहराई दिखाता है  ।  ।  इस फिल्म से अपना करियर शुरू कर रही अंजनी धवन ने भी ठीक काम किया है।  बिन्नी का किरदार अंजनी की उम्र के हिसाब से मेल खाता है।  इस कारण से बिन्नी के इस रोल को करने में उनको कोई दिक्कत नहीं हुई होगी।  बाक़ी कलाकारों ने ठीक काम किया है ।

निर्देशन – फिल्म का निर्देशन संजय त्रिपाठी ने किया है।  फिल्म के निर्देशन की बात करें तो संजय अपनी कहानी के साथ न्याय करते दिखाई नहीं दिए है।  इस लिहाज़ से फिल्म के निर्देशन को कमजोर ही कहा जाये तो बेहतर होगा।

लेखन – फिल्म को संजय त्रिपाठी और नमन त्रिपाठी ने लिखा है।  कहानी ठीक है।  कहानी में पिता पुत्र दादा और पोती के रिश्तों की बात है।  कमजोर पटकथा के कारण फिल्म अपनी बात उस तरह नहीं कर पाती जैसा की होना चाहिए।

संगीत – फिल्म के समाप्त होने के बाद फिल्म में विशाल मिश्रा ने एक गाना गाया है और उसका संगीत दिया है।  गाना काफी अच्छा है।

फिल्म को क्यों देखें – यह एक रिश्तों की अहमियत बताती फिल्म है।  जब एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी में जो एक संवाद की कमी हो जाती है।  वो खूबसूरत  रिश्तों को कभी कभी बोझ बना देती है।  जबकि वो बोझ नहीं दायत्व का भाग  है। फिल्म में दो पीड़ी के उतर चढ़ाव और प्यार की कहानी है बिन्नी और फॅमिली ।

 

 

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