Cinema 70mm Mumbai / Review By ActAbhi – 4*/5* –
सिनेमा वह माध्यम है जो अतीत में घटित हुई चीजों को सारबद्ध करके आज की पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करता है पर इसमें कुछ पेच है कुछ निर्माता इस इतिहास की घटनाओं को सँजोकर उसे प्रस्तुत करते हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसा करने में समर्थ नहीं हो पाए या कहा जाए कि वह ऐसा करना नहीं चाहते हैं लेकिन जब कोई निर्माता इस तरह की फिल्म बनाता है तो वह फिल्म दर्शकों के दिलों में उतर जाती है । ऐसी फिल्म की बात कर रहे हैं हम वह है कंगना द्वारा अभिनीत और निर्देशित फिल्म इमरजेंसी की सन 80,90 और 2000 के बाद जन्म लेने वाली भारतीय पीढ़ी को शायद आपातकाल इमरजेंसी में जो घटित हुआ उसको आप सिर्फ अनुभव ही नहीं कर सकते हैं कि उस समय क्या स्थिति रही होगी। श्रीमती इंदिरा गांधी ने जहां एक तरफ आपातकाल का घाव देश को दिया लेकिन उन्होंने अपने प्रारंभिक दिनों में असम में जो कर दिखाया उसकी वजह से असम आज भारत का हिस्सा है। यह भी इतिहास है अगर इमरजेंसी का काला अध्याय है तो 1971 कि पाकिस्तान पर विजय और बांग्लादेश का निर्माण भी है । इंदिरा गांधी अपने व्यक्तित्व के कारण हमेशा चर्चा में रही और सफलता के चलते-चलते असफलता असफल होने का डर हमसे कुछ ऐसी अप्रत्याशित चीज कारा देता है तो शायद हम करना ना चाहते हो। ऐसा ही इमरजेंसी में हुआ श्रीमती इंदिरा गांधी शायद इमरजेंसी ना लगाना चाहती हो लेकिन सत्ता के जाने का डर उनको ऐसा निर्णय लेने पर मजबूर कर देता।
कहानी- इस फिल्म की कहानी की बात करें तो फिल्म इंदिरा गांधी के बचपन से शुरू होकर उनके पूरे राजनीतिक जीवन और उनकी हत्या पर खत्म होती है। कहानी पूरी सिंपल है और इसके बारे में ज्यादातर लोगों को पता है इस कहानी में इंदिरा गांधी के 1962 भारत चीन युद्ध के समय असम में जाकर जो किया गया वह भी इतिहास का हिस्सा है इसके बाद वह भारत की प्रधानमंत्री बनी और 1971 में उन्होंने जो कर दिखाया उसे करना वाकई असंभव है।
इस विजय में जिसमें पाकिस्तानी सेना के 90 हजार सैनिकों को भारतीय सेना के सामने सरेंडर करना इतिहास में भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और भारतीय सेना के कौशल और पराक्रम को इतिहास ने स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करता है।
इसी के साथ उनके द्वारा लाहौर समझौता किया जाना देश के विपक्ष को रास नहीं आता है। इतनी बड़ी जीत के बाद जिसमे हम pok वापिस ले सकते थे। लेकिन क्यों नहीं किया गया ?
इसके बाद देश का आपातकाल दिखाया जाता है उसमें किस तरह प्रेस को बंद कर दिया गया था। अखबार वही चल सकते थे जो सरकार की अनुमति से चलते थे । वहीं कितने लाख लोगों की नसबंदी कर दी गई इसके बाद इंदिरा गांधी आपातकाल हटाती हैं और इंदिरा गांधी खुद चुनाव हार जाती है । विपक्ष की मिली जुली सरकार बनती है और ज्यादा दिन तक चल नहीं पाती है इसके बाद इंदिरा गांधी दोबारा से भारत की प्रधानमंत्री बनती हैं और इसी दौर में 1980 में पंजाब में आतंकवाद शुरू हो जाता है और आतंकवादी मंदिर का सहारा लेकर अलगाववाद को बढ़ावा देने लगते हैं और इंदिरा गांधी ने उसे समय ऑपरेशन ब्लू स्टार करके उस अलगाववाद को मिट्टी में मिला दिया था और उसी से नाराज होकर दो उनके दो सिख अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी थी।
अभिनय- अभिनय की बात करें तो सभी ने शानदार काम किया है। कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी का किरदार जिस शिद्दत के साथ निभाया है वह काबिले तारीफ है। फिल्म देखते समय कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है कि सामने असली इंदिरा गांधी तो नहीं है ? अनुपम खेर ने जयप्रकाश नारायण नारायण, श्रेयस तलपड़े ने अटल बिहारी वाजपेई, सतीश कौशिक ने बाबू जगजीवन राम का किरदार बखूबी से निभाया है. मिलिंद सोमन ने सैम का किरदार बखूबी निभाया है।वही संजय गांधी के किरदार में विशाख नायर काफी प्रभावित करने वाला रोल किया है कुल मिलाकर करें तो सभी लोगों ने अव्वल दर्जे का अभिनय किया है।
निर्देशन- निर्देशन की बात करें तो कंगना अपने एक बार फिर दिखा दिया है कि जितनी अच्छी वह अभिनेता है उतनी ही अच्छी निर्देशक भी है ।
संगीत – संगीत की बात करें तो बैकग्राउंड स्कोर और कुछ गाने बहुत ही अच्छे हैं मनोज मुंतशिर ने अच्छे गाने लिखे कुल मिलाकर कहा जाए तो यह एक मास्टर पीस है।
बात करते हैं इसकी कुछ कर्मियों की फिल्म में अगर बीच में जो गाने हैं अगर वह ना होते तो फिल्म ज्यादा प्रभावी होती क्योंकि इस तरह की फिल्मों में गानों का कोई भी महत्व नहीं होता है और अगर उन गानों को निकाल दिया जाता तो फिल्म की गति या उसके प्रभाव पर कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन बहुत छोटी सी बात है और भारतीय सिनेमा का एक कलर है कि गाने नहीं है तो फिल्म नहीं है खैर यह तो निर्माता को सोचना पड़ेगा
फिल्म क्यों देखें- आज के युवाओं को भारत की राजनीति में घटित सबसे कलंकित घटना को जानना और उसके घाव को महसूस करने की हमेशा आवश्यकता थी और रहेगी क्योंकि जब तक आप इमरजेंसी के काले दिनों को नहीं जानेंगे तब तक आप यह नहीं जान पाएंगे कि आज आप जिस तरह स्वतंत्रता से भारतीय समाज में रह रहे हैं उस स्वतंत्रता की कितनी कीमत है कितनी अमूल्य है वह स्वतंत्रता।