Cinema 70mm / Review By ActAbhi – 2.5*/ 5 * -एक जमाना था जब भारत में ऐसी तस्वीरें समाज में आम हुआ करती थी पर आज ऐसी स्थिति कमोवेश दिखाई नहीं देती है। भारत का कानून जातिवाद के मुद्दे पर बहुत सख्त है। इसके साथ हमारा समाज भी सामाजिक रूप से बड़ा हुआ है। जातिवाद की सच्ची घटना पर आधारित फिल्म वेदा।
कहानी – राजस्थान के एक गाँव में रहने वाले दलित परिवार की बेटी वेदा कॉलेज में पड़ती है। जहाँ पर ऊँची जाति के कुछ लड़के जिसमे गाँव के प्रधान का भाई भी है। दलित समाज की लड़की वेदा को परेशान करते हैं। वेदा कॉलेज में बोक्ससिंग सीखना चाहती है पर गाँव के प्रधान के भाई को जब यह बात पता चलती है तो वो वेदा पर हमला करता है और बॉक्सिंग किट खरीदने के लिए जो पैसे वेदा को उसके पिता से मिलते है। उन पैसों को गाँव के प्रधान का भाई फाड़ देता है।
जॉन अब्राहम का फिल्म में नाम मेजर अभिमन्यु कँवर है जिसके द्वारा कश्मीर में एक ऑपरेशन के दौरान अपनी बीवी के कातिल आतकवादी को मार दिया जाता है।अभिमन्यु कँवर पर अपने सीनियर की बात ना मानने और आतंवादी का गाला काटने के कारण सेना द्वारा जॉन का कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है।वो आतंकवादी एक बहुत बड़ा सुराग था सेना के लिए। कोर्ट मार्शल के बाद अभिमन्यु अपने गाँव आ जाता है। जहाँ पर गाँव के प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह के कहने पर कॉलेज में बॉक्सिंग कोच के तौर पर लग जाता है। वेदा के साथ हो रहे भेदभाव के कारण वह उसका साथ देने का फैसला करता है।
वेदा बेरवा के भाई विनोद को ऊँची जात वाली लड़की से प्यार हो जाता है। कॉलेज के होली के कार्यक्रम के दौरान प्रधान का भाई और उसके दोस्त विनोद को ऊँची जाति वाली लड़की के साथ देख लेते है। इसके बाद होता है बहुत बड़ा बवाल। पुलिस पूरे बेरवा परिवार को गाँव के प्रधान जितेंद्र प्रताप सिंह के यहाँ पर ले जाती है। और उससे नाक रगड़ने को कहा जाता है। इसके बाद वेदा का भाई ऊँची जाति वाली लड़की के साथ गाँव से फरार हो जाता है। इसके बाद वेदा के भाई को मार दिया जाता है और उसके परिवार की जान खतरे में आ जाती है। इन सब को देखते हुए मेजर अभिमन्यु इस परिवार का साथ देता है।
पटकथा – इसकी पटकथा की बात करें तो बहुत ही कमजोर है। फिल्म कश्मीर से शुरू होती है। यह पर जॉन अब्राहम के साथ आतंकवादियों की लड़ाई होती है। मेजर पीओके में इस ओप्रशन को अंजाम देता है। सारी लड़ाई ख़त्म होने के बाद न ही बैकअप टीम आती है और न ही दुश्मन देश को पता चलता है। फाइट के एक सीन के दौरान जॉन को ऐ के 47 राइफल की गोलियों को एक पलंग से रोकते दिखाया गया। गाँव में आकर जॉन पर किसी चीज़ का कोई असर नहीं होता है। फिल्म देख कर तो ऐसा ही लगता है। गाँव में जाकर जॉन गाँव के प्रधान के छोटे भाई और उसके साथियों की पिटाई करता। उसका वीडियो बनाया जाता है। चेहरा ढका होने के कारण कोई उसे पहचान नहीं पता। सवाल यह उठा है एक छोटे से गाँव में अपने सामने रहने वाले को कोई पहचान नहीं पाया। अगर देखा जाए पूरी फिल्म में लॉजिक की भारी कमी है। वेदा बैरवा कॉलेज के नल से पानी नहीं भर सकती है तो फिर होली की पार्टी के दौरान वो लीड में कैसे डांस करती है। जब जॉन और वेदा गाँव से भागते है तो जिस तरह फाइट सीन को फिल्माया गया है उसको देखकर आपको सिर्फ हंसी आएगी। हाई कोर्ट में भारी गोलीबारी होती है लेकिन पूरा शहर सोया रहता है। जजों को ऐसे दिखाया गया है जैसे वो न्याय देने नहीं मांगते नज़र आ रहें है।
अभिनय – फिल्म में जॉन अब्राहम मुख्य भूमिका में है। फिल्म में जॉन के बहुत कम संवाद है।फाइट सीन्स में जॉन अच्छे लगे हैं। इस फिल्म में सरवरी बाघ ने वेदा बेरवा का किरदार निभाया है। सरवरी अपने इस किरदार में अच्छी लगी है। उन्होंने अपने किरदार के लिए जो मेहनत की है वो साफ़ दिखाई देती है। उन्होंने अच्छा अभिनय किया है। फिल्म में अभिषेक बनर्जी ने जिस तरह की भूमिका निभाई है। उसके हिसाब से वो बहुत कमजोर लगे है। जहाँ जॉन अब्राहम की जिस तरह की बॉडी है उसके हिसाब से अभिषेक बनर्जी कही फिट नहीं होते है। वो कही कही ओवर एक्टिंग करते दिखाई दिए हैं। आशीष विद्यार्थी को साइड में रोल दिया गया है। अगर उनको मुख्य खलनायक बनाया गया होता। वो ज्यादा प्रभावी होता। इसके अलावा प्रधान के छोटे भाई का किरदार क्षितिज चौहान ने बखूबी निभाया है। बाकी एक्टर्स ने ठीक काम किया है।
निर्देशन – फिल्म का निर्देशन निखिल आडवाणी ने किया है। निखिल एक अनुभवी निर्देशक है। निखिल ने जॉन के साथ बाटला हाउस बनाई है। इस फिल्म के निर्देशन की बात करें तो फिल्म में लॉजिक की भरी कमी है। फिल्म शुरू होते ही जो डिस्क्लेमर आता है और फिल्म के बाद जिस तरह दिखाया जाता है वो मैच नहीं खाता है। फिल्म में हीरो को दिखाने के लिए सारा कुछ किया गया। फिल्म में एक्शन बहुत ही औसत दर्जे का है।
फिल्म क्यों देखें – जॉन अब्राहम को एक्शन करते देखना चाहते है। और भारत में जाति प्रथा के कारण कैसा भेदभाव होता था। तो वह फिल्म आपके लिए है।