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राज कपूर हिंदी फिल्मों के मशहूर अभिनेता, फिल्म निर्देशक और निर्माता थे। उन्हें भारतीय सिनेमा में भारतीय सिनेमा के महानतम अभिनेता निर्माता और निर्देशकों में के रूप में जाना जाता है कपूर को अभिनय विरासत में मिला उनके पिता पृथ्वीराज कपूर अपने समय के मशहूर रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता थे । बचपन से ही राज कपूर अपने पिता के साथ रंगमंच से जुड़ गए थे। राज की फिल्मों ने भारत में ही नहीं बल्कि एशिया, मध्य पूर्व, कैरेबियन देश ,अफ्रीका और सोवियत ब्लॉक के कुछ हिस्सों में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त की थी ।
प्रारंभिक जीवन
राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को कपूर हवेली के पेशावर (पाकिस्तान ) के किस्सा ख्वानी बाजार में हुआ था । उनका शुरू का नाम सृष्टि नाथ कपूर था । उनके पिता का नाम पृथ्वीराज कपूर और मां का नाम रामसर देवी कपूर था । कपूर परिवार मूल रूप से ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले की समुद्री तहसील के समुद्री का रहने वाला था । बाद में कपूर परिवार पेशावर से बॉम्बे चला आया ।
1930 के दशक के दौरान जब पृथ्वीराज कपूर अपने करियर की शुरुआत में एक शहर से दूसरे शहर जाते थे तो परिवार को भी उनके साथ जाना होता था । राज कपूर ने अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई की उन्होंने देहरादून के कर्नल ब्राउन कैमरे स्कूल, कोलकाता में सेंट जेवियर्स कॉलेजिएट स्कूल और मुंबई में चैंपियन स्कूल में उन्होंने अपनी पढ़ाई की । राज कपूर का मन कभी पढ़ाई में नहीं लगा इसी कारण उन्होंने दसवीं की कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी ।
कैरियर
राज कपूर के फिल्मी करियर की शुरुआत तो एक तरह से कहा जाए तो बचपन में ही हो गई थी। उनके पिता पृथ्वीराज कपूर अपने समय के जाने-माने रंगकर्मी थे इसलिए रंगमंच और अभिनय से उनका जुड़ाव बचपन में ही हो गया था ।
राज कपूर उस समय के नामचीन निर्देशकों में से एक केदार शर्मा के साथ क्लैपर बॉय के रूप में काम करने लगे । उस समय कुछ ऐसा हुआ की किसी शॉर्ट को फिल्माने के दौरान राज कपूर ने क्लैप को इतनी जोर से मारा कि अभिनेता की नकली दाढ़ी उसमें फंसकर बाहर निकल आई । इससे केदार शर्मा बहुत नाराज़ हो गए । इन्होंने गुस्से में राज कपूर को जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया। राज कपूर को बाद में केदार शर्मा के निर्देशन में ही नीलकमल मिली। इस फिल्म में मधुबाला उनकी नायिका थी ।
यह समय था 1930 का जब राज कपूर ने मुंबई टॉकीज में क्लैपर बॉय और पृथ्वी थिएटर में अभिनेता के रूप में काम करना शुरू कर दिया था । ये दोनों कंपनी उनके पिता पृथ्वीराज कपूर की थी ।
10 साल की उम्र में वह पहली बार 1935 में बनी फिल्म इंकलाब में काम किया था । 1943 की फिल्म हमारी बात,(1943) गौरी में छोटी-छोटी भूमिकाओं में नजर आने लगे । राज कपूर ने फिल्म वाल्मीकि (1946) में नारद और अमर प्रेम (1948) में कृष्ण की भूमिका निभाई ।
राज कपूर को पहला बड़ा ब्रेक 1947 में बनी फिल्म नीलकमल में मधुबाला के साथ मिला । 1948 में 24 साल की उम्र में उन्होंने अपना खुद का स्टूडियो आर के फिल्म स्थापित कर लिया था । और अपने समय के सबसे कम उम्र के फिल्म निर्देशक बन गए थे । उन्होंने नरगिस, कामिनी कौशल और प्रेमनाथ के साथ फिल्म आग का निर्देशन किया ।
1949 में उन्होंने महबूब खान की अंदाज में दिलीप कुमार और नरगिस के साथ से अभिनय किया जो एक अभिनेता के रूप में उनकी पहली बड़ी हिट थी । इसके बाद उन्हें निर्माता,निर्देशक और अभिनेता के रूप में पहली सफलता उनकी ब्लॉकबस्टर फिल्म बरसात से मिली ।
उन्होंने अपने बैनर आर के फिल्म के अंतर्गत आवारा, श्री 420 और जिस देश में गंगा बहता है जैसी कई हिट फिल्मों का निर्माण किया और अभिनय भी किया ।
1964 में उन्होंने राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला के साथ रोमांटिक म्यूजिकल फिल्म संगम का निर्माण किया, जिसमें उन्होंने निर्देशन और अभिनय किया ।
एक अभिनेता के रूप में संगम उनकी आखिरी बड़ी सफल फिल्म थी। उसके बाद उन्होंने युवा अभिनेत्री राजश्री और हेमा मालिनी के साथ 1966 की अराउंड द वर्ल्ड और 1968 की सपनों का सौदागर में काम किया पर ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई । 1965 को वह चौथे मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के जूरी के सदस्य चुने गए थे।
1970 में उन्होंने अपनी फिल्म “मेरा नाम जोकर ” का निर्माण ,निर्देशन और उसमें अभिनय किया । इस फिल्म को पूरा होने में 6 साल से अधिक का समय लग गया । 1970 में रिलीज होने पर मेरा नाम जोकर बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली और इससे कपूर परिवार को बेहद गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा । बाद में इस फिल्म को “कल्ट क्लासिक” सर्वश्रेष्ठ फिल्मों सूची में शामिल किया गया।उनके बेटे ऋषि कपूर ने इस फिल्म में काम किया था।
1970 से 1980 के दशक की शुरुआत में उन्होंने महिला प्रधान फिल्मों का निर्माण किया जिसमें 1978 में जीनत अमान के साथ सत्यम शिवम सुंदरम , 1982 में पद्मिनी कोल्हापुरी के साथ प्रेम रोग , 1985 में राम तेरी गंगा मैली में मंदाकिनी के साथ फिल्मों निर्माण किया ।
1971 में उन्होंने अपने बड़े बेटे रणधीर कपूर को “कल आज और कल” में लॉन्च किया जिसमें जिसमें रणधीर कपूर, राज कपूर और उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने और साथ ही उनकी होने वाली पत्नी बबीता ने साथ काम किया । उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर को 1973 में बॉबी फिल्म से लांच किया । जिसका निर्माण और निर्देशन राज कपूर ने किया था । बॉबी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर रही थी । इस फिल्म में लोगों ने ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की जोड़ी को खूब सराय था । उस फिल्म का एक गीत “हम तुम कमरे में बंद हो और चाबी खो जाए” बहुत मशहूर हुआ था और उसके बाद डिंपल कपाड़िया बहुत लोकप्रिय अभिनेत्री बन गई थी । डिंपल ने उस फिल्म में बिकनी पहनी थी जो उस समय भारतीय फिल्मों के लिए काफी नई बात थी । 1975 में उन्होंने अपने बेटे रणधीर के साथ ” धर्म-कर्म ” में काम किया और रणधीर ने इसका निर्देशन भी किया था ।
1980 के दशक की शुरुआत में उन्होंने बहुत ही कम फिल्मों में अभिनेता के तौर पर काम किया। जिसमें 1978 में राजेश खन्ना के साथ “नौकरी” , 1980 में संजय खान के साथ “अब्दुल्ला” फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई।
राज कपूर ने कॉमेडी फिल्मों में भी अभिनय किया जिसमें दो जासूस और गोपीचंद जासूस प्रमुख थी । 1989 में उनको 11 वीं मास्को फिल्म फेस्टिवल में जूरी का सदस्य बनाया गया । राज कपूर की आखिरी फिल्म 1982 में बनी “वकील बाबू” थी जिसमें वह अपने छोटे भाई शशि कपूर के साथ दिखे थे। 1982 में उन्होंने अभिनेता अशोक कुमार के साथ ” चोर मंडली “ नाम की एक फिल्म भी बनाई जो कानूनी विवाद के कारण रिलीज नहीं हो सकी। उन्होंने अभिनेता के तौर पर 1984 में ब्रिटिश टेलीविजन के लिए बनी फिल्म किम में एक छोटी सी भूमिका निभाई थी । आवारा फिल्म में आवारा फिल्म में उनका भारतीय चार्ली चैपलिन का रूप लोगों को काफी पसंद आया । उन्होंने मेरा नाम जोकर ,संगम, अनाड़ी, जिस देश में गंगा बहती है, बॉबी, राम तेरी गंगा मैली, प्रेम रोग जैसी हिट फिल्मों का निर्देशन किया ।
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सम्मान –
राज कपूर को अपने फ़िल्मी करियर में कई पुरस्कार मिले जिसमें उनको तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 11 फिल्मफेयर पुरस्कार और 21 नामांकन मिले ।
राज कपूर ने अपनी फिल्मों के बल पर देश विदेश में खूब नाम कमाया। जिसमें उनकी 1951 में रिलीज हुई आवारा और 1954 में रिलीज हुई बूट पॉलिश जैसी फिल्मों को कांस फिल्म फेस्टिवल में पाल्मे डी ओर के लिए नामांकित किया गया ।
फिल्म आवारा में राज कपूर के अभिनय को इतना पसंद किया गया कि उन्हें टाइम मैगजीन द्वारा द टॉप 10 परफॉर्मेंस ऑफ द ऑल टाइम में नंबर वन स्थान मिला ।
1956 में बनी फिल्म जागते रहो के लिए कार्लोवी वेरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में क्रिस्टल ब्लॉक पुरस्कार मिला।
2001 में स्टारडस्ट ने उन्हें मिलेनियम के सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और 2002 में स्टार स्क्रीन अवार्ड में उन्हें सुमन ऑफ द मिलेनियम का खिताब दिया ।
हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए राज कपूर को 1951 में पद्म भूषण और 1988 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
2011 में राज कपूर को कनाडा के ओंटारियो में ब्राम्पटन वर्क ऑफ़ फेम में शामिल किया जाएगा यह घोषणा की गई।
फिल्मों का संगीत
राज कूपर ने हिट और लोकप्रिय फिल्मों का निर्माण किया। उनकी फिल्मों में गानों को बहुत पसंद किए जाते है । जिसमें मेरा जूता है जापानी, आवारा हूँ , ए भाई जरा देख के चलो ।
राज कपूर को संगीत की अच्छी समझ थी। राज कपूर का फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों के साथ खास लगाव रहा या उनकी प्रतिभा के वह इतने बड़े प्रशंसक थे कि उन्होंने उनके साथ कई फिल्मों में साथ काम किया जैसे ख्वाजा अहमद अब्बास, राज कपूर की कई बेहतरीन फिल्मों के पटकथा निर्देशक थे । उन्होंने आवारा, अनहोनी, श्री 420, जागते रहो, मेरा नाम जोकर, बॉबी, मेहंदी आदि फिल्मों के लिए राज कपूर के साथ काम किया । शंकर जयकिशन के निधन के बाद ही उन्होंने अन्य संगीत निर्देशक के साथ काम किया। जिसमें बॉबी के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, सत्यम शिवम सुंदरम और प्रेम रोग, प्रेम ग्रंथ के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, धर्म-कर्म के लिए राहुल देव बर्मन, राम तेरी गंगा मैली और मेहंदी के लिए रविंद्र जैन के साथ काम किया।
उन्होंने शंकर जय किशन के साथ बरसात, आवारा, भूत पुलिस, श्री 420, चोरी-चोरी, कन्हैया, मैं नशे में हूं, जिस देश में गंगा बहती है, आशिक , एक दिल शॉप सनी, संगम, तीसरी कसम, दुनिया भर में दीवाना, सपनों का सौदागर, मेरा नाम जोकर , कल आज और कल इसके साथ ही उन्होंने नरगिस के साथ कई फिल्मों में साथ काम किया। इसमें 6 उनकी खुद की प्रोडक्शन थी । आज, अंदाज, बरसात, प्यारी, जान पहचान, आवारा, अंबर, अनहोनी, आशियाना ,बेवफा, पापी, धुन, श्री 420, चोरी-चोरी जागते रहो।
मुकेश ने राज कपूर की लगभग सभी फिल्मों में गाने गए । जब मुकेश की मृत्यु हुई तो राज ने कहा था मैंने अपनी आवाज खो दी । इसके बाद मन्ना डे के साथ राज कपूर ने कई सुपरहिट फिल्म जैसे कि श्री 420, चोरी-चोरी में काम किया ।
फ़िल्मी किस्से –
नरगिस के साथ रिश्ता
राज कपूर के बेटे अभिनेता ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा खुल्लम-खुल्ला में अपने पिता अभिनेता राज कपूर के कथित अफेयर्स का भी जिक्र किया है । जिसमें उन्होंने राज कपूर और नरगिस के बारे में जानकारी दी है । हालांकि नरगिस का नाम अपनी आत्मकथा में उन्होंने नहीं लिखा है। वह लिखते हैं कि जब मेरे पिता राज कपूर 28 साल के थे । उस वक्त वह किसी से बेपनाह मोहब्बत करते थे । अफसोस की बात यह है कि वह मेरी मां नहीं थी । उनकी प्रेमिका कोई और नहीं बल्कि उसे वक्त की सुपरहिट फिल्में बरसात, आवारा की नायिका थी । गौर करने वाली बात यह है कि ऋषि कपूर ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन जिन फिल्मों का जिक्र किया उन्होंने किया उनकी नायिका नरगिस थी ।
कहां तो यह भी जाता है कि नरगिस से राज कपूर नरगिस से बेइंतहा मोहब्बत करते थे लेकिन उनके लिए अपनी पत्नी कृष्णा कपूर और बच्चों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए । दरअसल नरगिस तो शादीशुदा राज कपूर के साथ रिश्ते में बने रहने को तैयार थी । लेकिन राज कपूर उसके लिए तैयार नहीं हुए । इसके बाद दोनों की राह एकदम अलग हो गई और नरगिस ने सुनील दत्त के साथ शादी कर ली । जानकार बताते हैं कि जब नरगिस और सुनील दत्त के फेरे हो रहे थे। उसे वक्त राज कपूर की आंखों से आंसू निकल गये थे । यह भी बताया जाता है कि अपना रिश्ता टूटने के बाद नरगिस और राज कपूर ने कभी साथ काम नहीं किया । शूटिंग खत्म होने के बाद आरके स्टूडियो में कभी कदम नहीं रखा । हालांकि इसके 24 साल बाद ऋषि कपूर की शादी में वह शामिल होने आर के स्टूडियो पहुंची । उसे वक्त पुरानी यादों को लेकर नरगिस बेहद नर्वस थी । ऐसे में कृष्णा कपूर ने उन्हें आराम से वहाँ रिसिव किया । उन्होंने कहा था मेरे पति बेहद खूबसूरत है । वह रोमांटिक भी है । मैं आकर्षण समझ सकती हूं । मैं जानती हूं कि आप क्या सोच रही हैं । लेकिन अतीत को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है । आप मेरे घर में खुशी के मौके पर आई हैं और आज हम दोनों एक दूसरे के दोस्त हैं । इस क़िस्से का जिक्र भी ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा में किया था ।
वैजयंती माला के साथ भी जुड़ा नाम –
राज कपूर का नरगिस के बाद अगर किसी अभिनेत्री के साथ नाम जुड़ा तो था, तो वह थी वैजयंती माला वैजयंती माला । उन दिनों की मशहूर अभिनेत्री थी । और उन्होंने राज कपूर के साथ सुपरहिट फिल्म संगम में काम किया था । ऋषि कपूर ने अपनी किताब में लिखा है । मुझे याद है जब पापा का अफेयर वैजयंती माला के साथ था । उसे वक्त मैं अपनी मां के साथ मरीन ड्राइव स्थित नटराज होटल में रहने लगा था । होटल से हम चित्रकूट स्थित अपने घर में शिफ्ट हो गए थे । लेकिन वही घर था जो पापा ने हमारे लिए खरीदा था । उन्होंने मां को वापस लाने की हर कोशिश की लेकिन माँ तब तक नहीं मानी, जब तक पापा ने अपनी जिंदगी से निकाल नहीं दिया । गौर करने वाली बात यह है की वैजयंती माला ने राज कपूर और अपने रिश्ते की अफवाहों को सिरे से नकार दिया था । ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा में लिखा था । उन्होंने लिखा था मेरे पिता ने पब्लिसिटी के लिए रोमांस की कहानी कही । मैं नहीं जानता कि वह कैसे गिर सकती है ? कैसे यह बात कर सकती है कि उसका अफेयर नहीं था उन्होंने बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि हकीकत बयां करने के लिए मेरे पिता अब जीवित नहीं है ।
जीनत के साथ भी जुड़ा नाम
फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम में राज कपूर के साथ जीनत अमान ने काम किया था तो ऐसा बताया जाता है कि वह बेहद करीब आ गए थे इसका जिक्र देव आनंद ने अपनी आत्मकथा में भी किया था । दरअसल देव जीनत से मोहब्बत करते थे । उन्होंने अपनी किताब में लिखा था । एक बार नशे में राज कपूर ने जीनत अमान को अपनी बाहों में भर लिया। उस वक्त दोनों की हालत ऐसी थी जैसे वह उनके लिए आम बात है । उसे वक्त मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया था । राज कपूर ने जीनत अमान से कहा था तुम अपना वादा तोड़ रही हो । तुमने मुझसे कहा था कि तुम मेरे सामने हमेशा सफेद साड़ी में आओगी । देव आनंद ने लिखा था उसे दौरान जीनत बेहद शर्मसार थी ।ये सब देखकर मेरा दिल टूट चुका था । और मैं वह जगह छोड़कर चला गया था ।
राज कपूर की विरासत –
भारतीय मीडिया में राज कपूर को अक्सर भारतीय सिनेमा का महानतम सो मैन कहा जाता है। फिल्म इतिहासकार और फिल्म प्रेमी उन्हें भारतीय सिनेमा के चार्ली चैप्लिन के रूप में भी याद करते हैं । क्योंकि उन्होंने अक्सर एक आवारा जैसी छवि पेश की जो प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी हंसमुख और ईमानदार था । उनकी फिल्में दक्षिण मध्य पूर्व एशिया, सोवियत संघ, चीन, मध्य पूर्व अफ्रीका के हिस्से में बहुत लोकप्रिय रही । उनकी फिल्मों को वैश्विक व्यावसायिक सफलता मिली । 1987 में राज कपूर पर एक फीचर फिल्म डॉक्यूमेंट्री बनाई गई। जिसका निर्माण भारत सरकार के फिल्म डिवीजन द्वारा किया गया । 14 दिसंबर 2001 को उनके सम्मान में इंडियन पोस्ट द्वारा उनके चेहरे वाला डाक टिकट जारी किया । उन्हें सम्मानित करने के लिए मार्च 2012 में मुंबई के बांद्रा बैंड स्टैंड में वर्क ऑफ द स्टार्स में उनकी एक पीतल की मूर्ति का अनावरण किया गया । उनकी फिल्म आज,श्री 420 ,जिस देश में गंगा बहती है ने नव स्वतंत्र भारत का जश्न मनाया और हिंदी फिल्म प्रेमियों को देशभक्त बनने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने एक गीत मेरा जूता है जापानी के गीत लिखे थे मेरा जूता है जापानी यह पतलून इंग्लिशतानी फिर भी लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी । भारतीय लेखिका महाश्वेता देवी ने 2006 में फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में अपने उद्घाटन भाषण के कार्यक्रम को रोक कर उनको याद किया। उन्होंने इन गीतों का उपयोग अपने देशभक्ति और अपने देश के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए किया। कपूर को 12 बार बॉक्स ऑफिस इंडिया की शीर्ष अभिनेताओं की सूची में शामिल किया गया । 2014 में गूगल ने उनका जन्मदिन मनाया । राज कपूर फिल्मी संगीत के चतुर निर्णायक थे । उन्होंने कई गाने सदाबहार हिट हैं । उन्होंने संगीत निर्देशक शंकर जयकिशन, गीतकार हसरत जयपुरी और शैलेंद्र का परिचय इस इंडस्ट्री से कराया। उन्होंने दृश्य शैली की अपनी सशक्त क्षमता के लिए भी याद किया जाता है । उन्होंने संगीत द्वारा निर्धारित मूड को पूरा करने के लिए आकर्षक दृश्य रचनाओं व्यस्त सीटों और नाटकीय प्रकाश व्यवस्था का उपयोग किया । उन्होंने अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया और मंदाकिनी का परिचय भी इस इंडस्ट्री से कराया । अपने बेटे रणधीर कपूर, ऋषि कपूर को भी लॉन्च किया । अपनी अभिनेत्री से अंग प्रदर्शन करवाने के लिए वो उस समय प्रसिद्ध हुए । जो भारतीय सिनेमा में उन दिनों बहुत आम नहीं थी । राज कपूर की की फिल्म श्री 420 के गाने मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंगलिस्तानी को 20th Century Studios की 2016 की फिल्म डेडपूल के शुरुआती सीक्वेंस में किया गया है . जिसमें रियान रेनॉल्ट ने भी अभिनय किया है 1968 में व्लादिमीर वायसोस्की की द्वारा लिखित योगियों के बारे में गीत में राज कपूर को शिव और योग के साथ सोवियत संघ में भारतीय संस्कृति के तीन सबसे प्रसिद्ध प्रतीकों के रूप में उल्लेख किया गया है। उन्हें भारतीय फिल्मों का क्लर्क गेबल भी कहा जाता था ।
फ़िल्में
- 1970 मेरा नाम जोकर
- 1968 सपनों का सौदागर
- 1967 अराउन्ड द वर्ल्ड
- 1967 दीवाना
- 1966 तीसरी कसम
- 1964 संगम
- 1964 दूल्हा दुल्हन
- 1963 दिल ही तो है
- 1963 एक दिल सौ अफ़साने
- 1962 आशिक
- 1961 नज़राना
- 1960 जिस देश में गंगा बहती है
- 1960 छलिया
- 1960 श्रीमान सत्यवादी
- 1959 अनाड़ी
- 1959 कन्हैया
- 1959 दो उस्ताद
- 1959 मैं नशे में हूँ
- 1959 चार दिल चार राहें
- 1958 परवरिश
- 1958 फिर सुबह होगी
- 1957 शारदा
- 1956 जागते रहो
- 1956 चोरी चोरी
- 1955 श्री 420
- 1954 बूट पॉलिश
- 1953 धुन
- 1953 आह
- 1953 पापी
- 1952 अनहोनी
- 1952 अंबर
- 1952 आशियाना
- 1952 बेवफ़ा
- 1951 आवारा
- 1950 सरगम
- 1950 भँवरा
- 1950 बावरे नैन
- 1950 प्यार
- 1950 दास्तान
- 1950 जान पहचान
- 1949 परिवर्तन
- 1949 बरसात
- 1949 सुनहरे दिन
- 1949 अंदाज़
- 1948 अमर प्रेम
- 1948 गोपीनाथ
- 1948 आग
- 1947 जेल यात्रा
- 1947 दिल की रानी
- 1947 चित्तौड़ विजय
- 1947 नीलकमल
- 1982 वकील बाबू
- 1982 गोपीचन्द जासूस
- 1981 नसीब
- 1980 अब्दुल्ला
- 1978 सत्यम शिवम सुन्दरम
- 1978 नौकरी
- 1977 चाँदी सोना
- 1976 ख़ान दोस्त
- 1975 धरम करम
- 1975 दो जासूस
- 1973 मेरा दोस्त मेरा धर्म
- 1971 कल आज और कल
- 1946 वाल्मीकि
- 1943 गौरी
- 1943 हमारी बात
- 1935 इन्कलाब
विवाद –
उनकी पत्नी कृष्णा, नर्गिस, पद्मिनी और वैजयन्ती माला जैसी भारतीय नायिकाओं के साथ राज कपूर के सबंधों से काफी परेशान रहती थीं, जिसके चलते वह कई बार घर छोड़ कर चली जाती थी ।
वर्ष 1978 में, उन्होंने महान गायिका लता मंगेशकर से वादा किया कि वह उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर को फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में संगीत निर्देशक के रूप में नियुक्त करेंगे। लेकिन जब लता मंगेशकर एक संगीत दौरे पर संयुक्त राज्य अमेरिका गई हुई थीं, तब उन्होंने इस फिल्म के लिए हृदयनाथ मंगेशकर की जगह लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को संगीत निर्देशक के रूप में ले लिया था । जिसके बाद बताया जाता है की लता मंगेशकर उनसे नाराज हो गईं।
मृत्यु – राज कपूर की मृत्यु 1988 में हुई । वो अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अस्थमा से पीड़ित थे । उनको नई दिल्ली में दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त करना था । वह उसे कार्यक्रम में गिर पड़े थे । उन्हें इलाज के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली ले जाया गया । राज एम्स में वह लगभग 1 महीने भारती रहे । इसके बाद उनकी मृत्यु हो गई ।