समय भास्कर मुंबई। स्क्रीनराइटर्स एसोसिएशन (एसडब्ल्यूए) ने वार्तालाप के नए संस्करण का आयोजन किया। वार्तालाप , लेखकों के साथ बातचीत लेखन के बारे में इस टैग लाइन के साथ। यह लेखकों और गीतकारों के साथ बातचीत करने वाला एक प्रमुख मंच है।
वार्तालाप के इस संस्करण में लापता लेडीज फिल्म के लिए मशहूर हुई लेखिका स्नेहा देसाई ने अपने अनुभव साझा किये।

उन्होंने अपने करियर के विभिन्न पड़ावों पर चर्च की । उन्होंने बताया कि उनकी यात्रा रंगमंच से शरू होकर , टीवी से होती हुई फिल्मों तक पहुंची है। उन्होंने अपने लेखन के क्षेत्र में आई चुनौतियों के बारे में भी बताया। किस तरह वो रंगमंच के लिए काम करती थी और फिर टीवी जहाँ रोज़ आपको लिखना होता है, लेकिन फिल्म के लिए बहुत अलग तरह का व्यवहार करना होता है। स्नेहा ने लापता लेडीज की पटकथा यानी स्क्रीनप्ले लिखा है। इस फिल्म के लिए जब उनको कहानी मिली तो कहानी का स्वरुप अलग था। उन्हने इस कहानी को व्यंग के माध्यम से कहने की कोशिश की है। किरण राव ने उनको पटकथा लिखने की पूरी छूट दी, उन्होंने बताया की एक बार सीन्स पर बात होने के बाद कोई भी बदलाब के वो पूरी तरह खिलाफ थी।

कार्यक्रम का संचालन हितेश केवल्या ने किया, जो “शुभ मंगल सावधान” और “शुभ मंगल सावधान” जैसी फिल्मों के पटकथा लेखक और निर्देशक के रूप में काम कर चुके हैं।
हितेश ने जब पूछा की अक्सर होता है कि जब आप अपनी पहली फिल्म लिख रहे होते हो तो आपको फिल्म में एक लेखक के रूप में किसी अन्य लेखक के साथ नाम साझा करना पड़े ? इस सवाल के जवाब में स्नेहा ने कहा कि जब आप नए होते हो तो आपके पास इतनी हिम्मत नहीं होती की आप पूछ सको कि फिल्म में मेरा क्रेडिट क्या है ,क्या आने वाला है, क्या आएगा , वो एक डर है। उससे तो सबको गुजरना ही पड़ेगा। लापता लेडीज की कहानी बिपलब गोस्वामी की थी। उन्होंने कम्पटीशन में इस कहानी को भेजा था। वहां पर आमिर खान जज थे। उन्होंने इस कहानी को द्वितीय पुरस्कार दिया था। दो ढाई साल के बाद इस कहानी की बारी आई।

स्नेहा ने आगे कहा कि दीपक के किरदार को लेकर बहुत सोच विचार किया उन्होंने कहा कि वो रंगमंच किया करती थी वहां पत्रों के पास बहुत सारे संवाद होते हैं। दीपक फिल्म का हीरो है , पर उसके पास संवाद के नाम पर कुछ नहीं था। दीपक के किरदार में स्पर्श श्रीवास्तव ने बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने अभिनय भाव के माध्यम से किया है।

एक सवाल के जबाब में स्नेहा ने बताया कि स्टेशन में कैंटीन वाली मंजू माई  क्यों बोलती है कि  एक फ्रॉड चल रहा है। मंजू माई  के घर पर बिल्ली ही क्यों थी। मंजू माई का बाद में मिठाई खाना। ये सब किसी न किसी कारण से था। फिल्म में दीपक,फूल ,जया और इंपेक्टर का किरदार अपने आप में ही कहानी के मुख्य पात्र है। कहानी में इसंपेक्टर उतना ही भ्रष्ट है उसमें कोई परिवर्तन नहीं आता है। वो स्थिति के अनुसार काम कर रहा है। जया की मांग ही इतनी है कि उसको पढ़ना है। बाद में जया जो गहने उसको देती है। ये उसके नहीं है वो उनको रख लेता है।

हितेश केवल्या ने कहानी, पटकथा और लेखन से जुडी तमाम बातें की उन्होंने वहां आये नए लेखकों के सवालों का उत्तर भी दिया। इस अवसर पर बोलते हुए, एसडब्ल्यूए इवेंट्स सब कमेटी के चेयरपर्सन सत्यांशु सिंह ने कहा, “वार्तालाप पटकथा लेखन समुदाय के भीतर संवाद और सशक्तिकरण की संस्कृति को सक्षम करने के लिए एसडब्ल्यूए की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

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