सिनेमा 70mm . ActAbhi – 4*/5 –आज के डिजिटल युग में आप कहाँ जा रहे, क्या खा रहें हैं ,सब कुछ पर नज़र में रहती है। इस सब में क्या आप कल्पना कर सकते है। नई दुल्हन खो जाये वो भी घूंघट के चलते । आज के समय में ऐसा सोचना भी मुश्किल है। उस समय का भारत और थोड़ा बहुत आज का भी भारत जहाँ लड़कियों को खाना बनाना, कपड़े सिलना, घर के काम करना तो सिखाया जाता हैं। लेकिन पढाई के नाम पर बस क्या ही कहें । अगर कोई लड़की पढ़ना चाहे तो माँ बाप उसको पढ़ाने के बजाय उसकी शादी कराना की अपना धर्म समझते हैं। दहेज़ के लिए खेत खलिहान घर यहाँ तक की अपना आत्म सम्मान तक को दांव पर लगा देते हैं। आज भी भारत में लड़की को पढ़ाने के बजाय उसकी शादी पर अधिक ज़ोर रहता है। ऐसे ही घटनाओं से हास्य के रूप में आपको सोचें को मजबूर करती ये फिल्म -लापता लेडीज
कहानी –
फिल्म की कहानी 2001 के निर्मल प्रदेश के किसी गाँव की है। फिल्म शुरू होती है लड़की की विदाई के समय की । जिस समय लड़की को विदा किया जाता है। वो घूंघट में होती है । घूंघट के चलते बहू बदल जाती है।कहानी का नायक दीपक अपनी पत्नी के जगह किसी और की बीवी को ले आता हैं उसको पता भी नहीं चलता है। राज खुलता है घर आने पर। तब शुरू होता है गड़बड़झाला। इसके बाद खोई हुई बहू को खोजने का सिलसिला शुरू होता है ।थाने में बहु के बदल जाने की रिपोर्ट लिखाई जाती है। थाने का इंस्पेक्टर रविकिशन जब दीपक से लड़की की फोटो मांगता है तो जो फोटो दिखाई जाती है। उसको देखकर इंस्पेक्टर अपना माथा पकड़लेता है।
अभिनय – सभी ने अच्छा अभिनय किया है। रविकिशन अच्छे अभिनेता हैं । उन्होंने अच्छा अभिनय किया है। स्पर्श श्रीवास्तव ने दीपक कुमार का किरदार अच्छी तरह निभाया है।कम संवाद होने के बाद भी अच्छा अभिनय किया है। उनका अभिनय प्रभावित करता है। फूल कुमारी के किरदार में नीतांशी गोयल ने अच्छा काम किया है। प्रतिभा राना ने जया का किरदार अच्छी तहर निभाया हैं। दीपक की माँ यशोधा का किरदार निभाने वाली गीता अग्रवाल शर्मा ने प्रभावशाली अभिनय किया है। कुल मिलाकर कहें तो अभिनय के मोर्चो पर फिल्म बाज़ी मार जाती है।
कहानी और स्क्रीनप्ले – फिल्म की कहानी और उसका स्क्रीनप्ले काफी सहज है और दर्शकों को फिल्म से जोड़े रखता है। मूल कहानी बिपलब गोस्वामी की है। इसमें स्नेहा देसाई ने इसकी पटकथा और संवाद लिखें हैं। उनका साथ दिव्यनिधि शर्मा ने दिया है।
कहानी अपनी बात कहने में सफल हुई है।
निर्देशन – किरण राव का निर्देशन अच्छा है। ऐसी कहानी को चुनने के लिए उनकी सराहना होनी चाहिए। आज कल के फिल्मकार जहाँ फिल्म को बॉक्सऑफिस पर हिट कराने के लिए जोड़ तोड़ में लगे रहते हैं। वहीं किरण ने इस फिल्म को बना कर एक अच्छा सन्देश दिया है कि कम पैसों में अच्छी फिल्म बन सकती है। फिल्म की लिए एक्टर्स का चयन अच्छा हुआ है। उन्होंने अच्छा काम करवाया है । उसके लिए उनकी सराहना होनी चाहिए। निर्देशन कहानी के अनुसार किया गया है।फिल्म में बहुत कुछ करने की कोशिश नहीं की गई है। फिल्म बीच में थोड़ी धीमी पड़ती है।
कुल मिला कर ऐसी फिल्मों का बनना सामाजिक तौर पर बहुत फायदेमंद साबित होगा अगर एक भी बिटिया अपने स्कूल को फिर से जा पाए।