Cinema70mm/  ActAbhi – 

कभी कभी समाज की समस्या को दिखाने  का जिम्मा वो लोग ले लेते है जिनको समाज का आईना कहा जाता है। मेरा मतलब है सिनेमा बनाने वाले। वैसे भारतीय सिनेमा में हिंदी सिनेमा की बात करें तो आज कल जो प्रचलन देखा जा रहा है उसमें जिधर किधर से भी हो  सके  ,उठाओ और एक  फिल्म चिपका दो।  अब बात करते है हमारे बारह फिल्म की।  इस फिल्म के निर्माताओं ने एक ऐसा विषय चुना जो अपने आप में आज की हकीकत को दर्शाता है । आज के भारत की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या ? लेकिन हकीकत यह  है कि ऐसे विषय पर फिल्म बनाना जिसमें विवाद होने की संभावना हो जब विवाद होता है तो उसके बाद कोर्ट कचहरी और फिर फ़िल्म को रिलीज़ करना है तो फ़िल्म की कटाई और छटाई । और तब तक फ़िल्म की आत्मा मर जाती है ।  काफी कठिन काम है । हमारे बारह फ़िल्म की कहानी सोचने को मजबूर ज़रूर करती है लेकिन फ़िल्म अपने रास्ते से भटक जाती है । और जो कहना चाहती है वो सही और प्रभावी ढंग से कह नहीं पाती है ।

कहानी – लखनऊ में रहने वाले मंसूर अली खान संजरी और उनके परिवार की कहानी है।  मंसूर अली खान संजरी पेशे से कब्बाल हैं । उसके 11 बच्चे हैं। उसके परिवार में एक बड़ा लड़का जो उसके साथ ही कब्बाली गाता है। एक छोटा बेटा ऑटो चलाता है।  छोटा बेटा पढ़ना चाहता था पर मंसूर ने अपने बेटे को सिर्फ मदरसे भेजा स्कूल नहीं इस बात का ताना छोटा बेटा अपने बाप को देता है।  मंसूर की एक बेटी अच्छी सिंगर होती है और वो एक सिंगिंग प्रतियोगिता में भाग लेती है।  उसका सिंगिंग कम्पटीशन में चयन हो जाता है।  लेकिन जब मंसूर को यह बात पता चलती है तो वो उसको जाने नहीं देता है और बहुत बड़ा बवाल खड़ा कर देता है। एक बेटी शायर बनना चाहती है लेकिन वो अपनी बात अपने बाप को बता नहीं सकती  है।  एक दिन मंसूर की बीवी गर्भवती हो जाती है लेकिन डॉक्टर उसको बताते हैं की अगर उसने बच्चे को जन्म दिया तो वो मर सकती है क्योकि वो बहुत कमजोर है। मुद्दा इतना बढ़ जाता है कि मामला कोर्ट पहुँच जाता है। मंसूर की बेटी मंसूर के खिलाफ केस कर देती है और उसका केस वकील आफरीन लड़ती है।परिवार के सारे लोग केस में गवाही देते है लेकिन मंजूर अली खान संजरी अपने धर्म को आगे रख कर कहता है कि  हमारे धर्म में इस बात की इजाजत नहीं है।आखिरकार सारी बात मंसूर की बीवी पर छोड़ दी जाती है। इस कोर्ट केस का फैसला क्या होता है ? यह तो फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।

पटकथा – फिल्म की कहानी के हिसाब से स्क्रीनप्ले लिखने की कोशिश की गई है लेकिन फिल्म अपनी बात कहते कहते रह जाती है।  फिल्म शुरू से भटकती रहती है। फिल्म में दिखाया गया कोर्ट केस रोचक हो सकता था। क्योकि मध्यांतर के बाद कोर्ट केस ही है तो उस जगह फिल्म कमजोर लगी।  विवाद के चलते फिल्म की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। फिल्म के दृश्य काटे गए है और तो और फिल्म को कई जगह म्यूट किया गया है जिससे फिल्म अपनी रफ़्तार नहीं पकड़ पाती है। ट्रेलर ने जिस तरह दर्शकों की जिज्ञासा बढ़ाई थी फ़िल्म वो कमाल नहीं कर पाई । फिल्म के मेकर्स ने मुद्दा अच्छा चुना था लेकिन अपनी बात प्रभावी ढंग से रख नहीं पाये ।

अभिनय – फिल्म में मुख्य किरदार अन्नू कपूर ने निभाया है।  मंसूर अली खान संजरी के किरदार में अन्नू ने ठीक  काम किया है । फिल्म में अश्विनी कालसेकर ,मनोज जोशी,राहुल बग्गा अदिति भटपहरी, हरीश छाबड़ा,इश्लिन प्रसाद ,पार्थ समथान शान सक्सेना ,परितोष त्रिपाठी। , उदय वीर सिंह यादव ने  ठीक ठाक काम किया है।

निर्देशन – कलम चंद्रा ने इस फिल्म का निर्देशन किया है।  अगर बात निर्देशन की करें तो फिल्म शुरू से अंत तक भटकी रहती है।  फिल्म अपनी बात कहते कहते रह जाती है। कमल को शुरू से ही पता होगा कि जिस विषय पर वो फिल्म बनने जा रहें है। वो विषय अपने आप में कितना गंभीर है और इस पर विवाद होना तय है ।  इस तरह के संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म  कॉन्स में तो दिखाई जा सकती है लेकिन भारत में नहीं। उस स्थिति में निर्देशक को पहले से ही तैयार होना चाहिए था की अपनी कहानी की आत्मा नहीं मरने दें। जो बात वो कहना चाहते है वो प्रभावी ठग से कह सकें ।

लेखन – फिल्म को राजन अग्रवाल ने लिखा है और फिल्म के संवाद कमल चंद्रा ने लिखें है।फिल्म में कुछ संवाद काफी अच्छे लिखे गयें हैं। “देश का विकास सरकार की जिम्मेदारी और परिवार के विकास की जिम्मेदारी मर्दे की होती है “। “बच्चे हमारे मेहनत हमारी बारह हो या चौबीस ” ये संवाद अच्छे लिखे गये हैं लेकिन कमजोर स्क्रीन प्ले के कारण प्रभावी नहीं दिखते हैं।

फिल्म का विषय अच्छा है और मेकर्स को इस विषय को चुनने के लिए उनकी हिम्मत की दाद देनी चाहिए क्योकि वो एक ऐसे  विषय पर फिल्म बना सकते थे जिसमे कोई विवाद नहीं होता। बात करें फिल्म की तो फिल्म का विषय आपको सोचने पर मजबूर करता है।  हम सब जिस समाज में रहते हैं उस समाज में क्या चल रहा है ?

 

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