By – ActAbhi – 4* / 5 – Cinema70mm-
कहानियों के मामले में हमारा भारत भरा पड़ा है। भारतीय सिनेमा अगर कहें कि मुंबई का सिनेमा कहानियों को लेकर हमेशा से थोड़ा सा पिछड़ा ही रहा है। अगर ऐसा कहा जाये तो कहना गलत नहीं होगा। हमारे पास इतिहास भरा पड़ा है। ऐसी कहानियों, ऐसे किस्सों से जो आज भी छुए नहीं गए या हमारे फिल्म निर्माता हिम्मत नहीं जुटा पातें है। आखिर सभी को पैसा कमाना हैं। हमारी अपनी कहानियों पर फिल्म बनाई जाये तो फिल्म चलती भी है और पैसा भी कमाती हैं। ऐसी ही सच्ची घटना पर फिल्म आ रही है श्रीकांत ।

कहानी – भारतीय समाज में बेटा पैदा होने की कुछ ज्यादा ही खुशियां मनाई जाती है और हो भी क्यों ना। भारतीय समाज में बेटे को बुढ़ापे की लाठी कहा जाता है। सहारा माना जाता है। फिल्म में भारत के एक गाँव में एक किसान के यहाँ बेटा पैदा होता है। बेटा पैदा होने के साथ साथ वो आगे चलकर क्या बनेगा उसकी के आधार पर उसका नाम तक रखा जाता है। लेकिन ऐसी खुशी के मौके पर अगर परिवार को पता चले कि बेटा अँधा पैदा हुआ है तो सारी खुशियां हवा हो जाती है। श्रीकांत के नाना को जब पता चलता है की वो देख नहीं सकता तो उसको बहुत बड़ा सदमा लगता है। जो बेटा बुढ़ापे की लाठी बनेगा वो ही बोझ लगने लगता है कि मानो छाती पर एक ऐसा पहाड़ आ गिरा है जो अब कभी नहीं हटने वाला है ? बेटा अँधा पैदा हुआ है । इसके बाद से समाज के लोग अपनी राय देने लगते हैं कि इसका भविष्य क्या होगा। इसको अभी समाप्त कर दो। माता पिता के मरने के बाद श्रीकांत का क्या होगा ? इन सब की बातों में आकर श्रीकांत के नाना जो उसके जन्म दिन पर इतने खुश होते है और पल भर में श्रीकांत को जिन्दा दफ़नाने के लिए जाते हैं। लेकिन माँ तो माँ होती हैं। कहते भी हैं कि माँ को उसका बच्चा दुनिया का सबसे सुन्दर बच्चा लगता है अब चाहे वो कैसा भी हो।

श्रीकांत को दफनाया नहीं जाता उसको बाकी बच्चों की तरह बड़ा किया जाता है । श्रीकांत शुरू से ही पढ़ने में मेधावी छात्र होता है। स्कूल में साथ के बच्चे उसको चिढ़ाते हैं और श्रीकांत को बड़े होकर भीख मांगने का कहकर ताने देते है । श्रीकांत आगे की पढाई नए स्कूल में करता हैं जो दिव्यांग बच्चों के लिए होता है। मेधावी होने के बाद भी श्रीकांत को उसके सच बोलने का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है और उसको स्कूल से धक्के मार कर निकल दिया जाता है। इसके बाद श्रीकांत अपनी टीचर को बोलता है कि उसको आगे पढ़ना है भीख नहीं मांगना है। इसके बाद श्रीकांत की टीचर उसके परिवार को यह विश्वास दिलाती है की चाहे कुछ भी हो श्रीकांत आगे पढ़ेगा। वो उसके साथ है । इसके बाद श्रीकांत के जीवन में किस तरह के उतार चढ़ाव आते है। किस तरह संघर्ष करके वो आगे की अपनी पढाई करता है और विदेश जाता है जीवन में किस मुकाम पर पहुँचता है । इसके बाद श्रीकांत के जीवन में क्या होता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

अभिनय – राज कुमार राव की बतौर अभिनेता बात की जाये तो उनको बॉलिवुड के अच्छे अभिनेताओं में से एक माना जाता है। एक अंधे दिव्यांग आदमी का उन्होंने जो किरदार निभाया है उसकी प्रसंशा भी हो रही है। एक लिहाज़ तक उनके अभिनय को ठीक ठाक कहा जा सकता है। उत्तम नहीं। फिल्म में बहुत जगह उनका अभिनय मेकेनिकल लगा है । बाकी कलाकारों की बात करें तो ज्योतिका,शरद केलकर ,अलिआ एफ ने अपने किरदारों को अच्छी तरह निभाया हैं ।बाकी सह कलाकारों ने ठीक काम किया है ।

निर्देशन – तुषार हीरानंदानी अपने निर्देशन से इम्प्रेस करने में सफल रहें है। सांड की आंख से निदेशक के रूप में शुरुआत करने वाले स्केम 2003 से प्रभावित करने वाले तुषार ने श्रीकांत में शानदार निर्देशन किया है। निर्देशन से पहले उन्होंने बहुत सारी फिल्मों के लेखक रहें है। ऐसे विषय पर फिल्म बनाने के लिए बतौर कहानीकार और निर्देशक हिम्मत चाहिए होती है। उन्होंने इसको बखूबी कर दिखाया है।

ईशान छाबड़ा ने अच्छा बैकग्राउंड स्कोर दिया है। जो प्रभावित करता है। छायांकन प्रथम मेहता, एडिटिंग देबस्मिता मित्रा एवं संजय सांकला , कहानी जगदीप सिद्दू और सुमित पुरोहित ने लिखी है। कहानी श्रीकांत बोला के जीवन पर आधारित है।

निर्माता – अक्सर फिल्म की समीक्षा लिखते समय निर्माता का नाम ही लिखा जाता है लेकिन टी सीरीज़ के भूषण कुमार को ऐसे विषय पर फिल्म बनाने के लिए उनकी सराहना करनी होगी। भूषण कुमार ,कृष्ण कुमार और निधि परमार हीरानंदानी फिल्म के प्रोडूसर हैं।

फिल्म का पहला हाफ बहुत शानदार है। पहले हाफ में कहानी बड़े ही शानदार तरीके से चलती है। इसमें इमोशन, ड्रामा और प्रेरणा से भरा हुआ है। फिल्म में बहुत सारी जगह ऐसी है जहाँ पर आप हसेंगे , श्रीकांत के संघर्ष में अपने आप को शामिल कर लेंगे। दूसरा हाफ थोड़ा सा भटका हुआ लगता है। कुल मिलकर श्रीकांत बोला की कहानी आपको जीवन से लड़ना सिखाती है। फिल्म 10 मई 2024 को रिलीज़ हो रही है।

 

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