Written by – Team Cinema 70 mm
जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला जी हां हम बात कर रहे हैं गुरुदत्त की जिन्हें उनकी फिल्मों के माध्यम से खूब प्यार मिला और आज भी इनके चाहने वालों को संख्या कम नही हुई है ‘। गुरुदत्त भारतीय सिनेमा में महान निर्देशक,अभिनेता लेखक ,निर्माता सिनेमेटोग्राफर के रूप में अपना एक ख़ास मुक़ाम रखते हैं । उनके द्वारा निर्देशित फ़िल्में , विश्व फ़िल्म जगत में अपनी ख़ास पहचान रखती हैं । गुरु दत्त को भारतीय फ़िल्मो का पहला शो मैन कहा जाता है ।
गुरु दत्त का शुरुआती जीवन —-
गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को हुआ था। गुरुदत्त का वास्तविक नाम वसंतकुमार पादुकोण था गुरुदेव के पिता का नाम शिव शंकर पादुकोण और माता का नाम वासंती पादुकोण था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई । पहले उनके पिता हेड मास्टर थे जो बाद में बैंक में भी काम करने लगे थे। उनकी माता स्कूल में अध्यापिका थी ।इसके साथ ही उनकी माँ लघु कथाएं भी लिखी थी साथ ही में बंगाली उपन्यासों का कन्नड़ भाषा में अनुवाद करती थी । गुरुदत्त परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण कॉलेज नहीं जा सके । परिवार में गुरुदत्त के दो भाई आत्माराम और देवदास तथा एक बहन ललिता थी।
करियर –
1942 की शुरुआत में, उन्होंने अल्मोडा के उदय शंकर के स्कूल ऑफ डांसिंग एंड कोरियोग्राफी में पढ़ाई की । उसके बाद वहां से, कलकत्ता में लीवर ब्रदर्स फैक्ट्री में एक टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में काम किया, हालाँकि, कुछ ही समय बाद उनका इस नौकरी से मोहभंग हो गया और उन्होंने इसे छोड़ दिया।
1944 में 3 वर्ष के अनुबंध पर गुरुदत्त को पुणे की प्रभात फिल्म कंपनी में उनकी नौकरी मिल गई । शुरू में गुरुदत्त को कोरियोग्राफर के रूप में नौकरी मिली लेकिन बाद में उन्हें अभिनेता और सहायक निदेशक की जिम्मेदारी भी मिल गई ।
एक बार की बात है जब प्रभात फिल्म कंपनी में देव आनंद ने गुरु दत्त को उनकी शर्ट पहने देखा तो उन्होंने इसके बारे में पूछा तब गुरु दत्त ने बताया की उनके पास कोई शर्ट नहीं थी तो लौंडरी वाले ने उनको यह शर्ट दे दी । आपको बता दें की देव आनंद और गुरु दत्त एक ही लौंडरी से कपड़े धुलवाते थे । इस घटना के बाद दोनों अच्छे दोस्त बन गये ।
बाद में दोनों ने साथ में काम भी किया । उन्होंने एक दूसरे से वादा किया था की जो भी पहले काम करेगा वो एक दूसरे को अपने यहाँ काम देगा । यानी गुरुदत्त और देवानंद ने एक दूसरे से वादा किया था कि यदि गुरुदत्त पहले निर्देशक बने तो वह देव को नायक लेंगे और यदि देव निर्माता बने गुरुदत्त को निर्देशक के रूप में लेंगे ।
उनके फ़िल्मी सफ़र की बात करें तो उन्होंने 1944 में निर्मित “चांद” फ़िल्म में श्री कृष्णा छोटा सा रोल किया था । विश्राम बेडेकर के सहायक निर्देशक के रूप में 1945 में फ़िल्म लखवानी में काम किया ।
1946 में पीएल संतोषी की फिल्म “हम एक हैं” में उन्होंने सहायक निर्देशक के अलावा सिनेमेटोग्राफर के रूप में भी कार्य किया । 1947 में प्रभात फ़िल्म कंपनी से उनका तीन साल का करार ख़त्म होने के बाद उन्होंने इंगलिश में शोर्ट स्टोरीज़ लिखना शुरू किया ।
इसके साथ ही उन्होंने 1947 में बॉम्बे का रुख़ किया । बॉम्बे में उन्होंने उस समय के बड़े निर्देशक अमय चक्रवर्ती के साथ 1949 में गर्ल्स स्कूल में और ज्ञान मुखर्जी के साथ बॉम्बे टॉकीज की 1950 में बनी फ़िल्म संग्राम में उनके साथ काम किया ।
1951 में बनी फ़िल्म “बाज़ी ” से गुरुदत्त ने निर्देशक के रूप में अपनी पारी की शुरुआत की । 1954 में बनी फ़िल्म “आर पार ” ने गुरु दत्त को सफल निर्देशक के रूप में ख्याति दिलाई । इसके बाद उन्होंने 1955 में मिस्टर एंड मिसेज 55, 1957 में प्यासा और 1959 में कागज के फूल,सीआईडी, सैलाब 1956 आदि फ़िल्में बनाई ।
“बाज़ी ” फ़िल्म के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात मशहूर सिंगर गीता राय से हुई । और 26 मई 1953 को दोनों ने शादी कर ली । 1959 में दत्त की कागज़ के फूल रिलीज़ हुई, जो सिनेमास्कोप में निर्मित पहली भारतीय फ़िल्म थी।
इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर दत्त को निराश किया । उसके बाद,गुरु दत्त के स्टूडियो की सभी बाद की फिल्मों को अन्य निर्देशकों ने किया, क्योंकि दत्त को लगता था कि उनका नाम बॉक्स ऑफिस के लिए अभिशाप है। कागज के फूल गुरु दत्त द्वारा निर्मित एकमात्र फिल्म थी जिसे बॉक्स ऑफिस पर असफल माना गया उस समय के अनुसार 17 करोड़, का घाटा उनको हुआ था जो उस समय के हिसाब से बहुत बड़ी रक़म थी ।
1960 में, दत्त की टीम ने एम. सादिक द्वारा निर्देशित चौदहवीं का चाँद रिलीज़ की, जिसमें गुरु दत्त के साथ वहीदा रहमान और रहमान ने अभिनय किया था। फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर जबरदस्त हिट रही और कागज के फूल से जो गुरु दत्त को नुकसान की भरपाई भी की। फ़िल्म का शीर्षक ट्रैक, “चौदहवीं का चाँद हो”, को काफ़ी पसंद किया गया था ।
1962 में साहिब बीबी और गुलाम रिलीज हुई , जो एक बेहद सफल फिल्म थी, जिसका निर्देशन गुरू दत्त के शिष्य अबरार अल्वी ने किया था, जिन्होंने इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता था। फिल्म में गुरु दत्त और मीना कुमारी के अलावा रहमान और वहीदा रहमान ने सहायक भूमिकाएँ निभाईं।
1964 में, गुरु दत्त ने हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित अपनी आखिरी फिल्म, सांझ और सवेरा में मीना कुमारी के साथ अभिनय किया। अक्टूबर 1964 में उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने कई फ़िल्में अधूरी रह गई । के आसिफ की फिल्म लव एंड गॉड में मुख्य भूमिका में लिया गया था, लेकिन बाद में उनकी जगह संजीव कुमार ने ले ली। वह पिकनिक में साधना के साथ भी काम कर रहे थे जो अधूरी रह गई । वह बहारें फिर भी आएंगी में निर्माण और अभिनय करने वाले थे, लेकिन उनकी जगह धर्मेंद्र ने मुख्य भूमिका निभाई और यह फिल्म उनकी टीम की आखिरी प्रोडक्शन के रूप में 1966 में रिलीज हुई।
गुरु दत्त को एक ऐसे निर्देशक के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने प्रकाश और छाया के संबंध में अपनी कल्पनाशीलता और नये प्रयोग के लिए जाना जाता है ।
कागज के फूल और प्यासा महान फ़िल्मो में से एक —–
कागज के फूल और प्यासा दोनों फ़िल्मो को अब तक की सबसे महान फिल्मों में शामिल किया गया है, साथ ही साइट एंड साउंड पत्रिका के 2002 के “टॉप फिल्म्स सर्वे” में भी शामिल किया गया है, जिसमें 250 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समीक्षकों और निर्देशकों का सर्वेक्षण किया गया था। 2005 में, प्यासा ने टाइम पत्रिका की 100 बेस्ट फिल्मों की सूची में अपनी जगह बनाई। 2010 में, दत्त को सीएनएन के “अब तक के शीर्ष 25 एशियाई अभिनेताओं” में शामिल किया गया था।
इंडिया पोस्ट ने जारी किया डाक टिकट –
गुरु दत्त पर एक डाक टिकट 11 अक्टूबर 2004 को इंडिया पोस्ट द्वारा जारी किया गया था। 10 अक्टूबर 2011 को, गुरु दत्त पर एक दूरदर्शन डाक्यूमेंट्री प्रकाशित हुई । 2021 में, लेखक यासर उस्मान ने उनके बारे में एक जीवनी पुस्तक प्रकाशित की, जिसका शीर्षक गुरु दत्त: एन अनफिनिश्ड स्टोरी है।
सफलता और असफलता एक सिक्के के दो पहलू हैं सभी लोग जानते हैं लेकिन कभी-कभी महान लोग भी इस सफलता और सफलता के चक्कर से परे नहीं रहते । गुरुदत्त जिनके शब्दकोश में असफलता जैसे शब्द की कोई जगह नहीं थी। उनके खास दोस्त स्वर्गीय देवानंद भी कहते थे की गुरु असफलता को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। असफलता चाहे प्यार में हो चाहे फ़िल्म को दर्शकों द्वारा नकारे जाने को ।
वहीदा रहमान से गुरुदत्त बहुत प्यार करते थे । लेकिन उनको प्यार में असफलता मिली । वहीदा से प्यार के चले , उन्होंने अपने पहले प्यार ,पत्नी और परिवार तक को छोड़ दिया लेकिन अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए वहीदा रहमान ने गुरु को छोड़ दिया और इस कारण से गुरुदत्त बहुत बुरी तरह टूट गए थे । नशे के आगोश में रहने लगे थे । वहीं दूसरा रिजेक्शन उनको कागज के फूल फिल्म में दर्शकों ने दिया जिसमें गुरु को बहुत ज्यादा वित्तीय नुकसान हुआ।
फ़िल्मी किरदारों को आम ज़िंदगी से लेना —–
गुरुदत्त एक महान फिल्मकार थे । वास्तविक जिंदगी के किरदारों को वह इतनी सहजता से फिल्मी पर्दे पर उतारते थे ,जिस को देखने वाले दंग रह जाते थे । आपको “सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराए ” मशहूर गाने को जॉनी वॉकर पर फिल्माया गया था । इसका आईडिया गुरु दत्त को कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल पर गोलगप्पे और झालमुरी खाते हुए आया था। जब वह झालमुरी खा रहे थे तो उन्होंने एक चार खाने की लूंगी और अजीब सी टोपी पहने, हाथ में तेल की बोतल ले कर घूम रहे मालिश वाले को देखा जो आवाज लग रहा था मालिश तेल मालिश । गुरु दत्त को मालिश वाले का हुनर काफ़ी अच्छा लगा और उन्होंने प्यासा फ़िल्म में इस सीन को फ़िल्माया ।
कोठे पर मिला था प्यासा फिल्म का सीन —
प्यासा फिल्म से शुरुआती दिनों में यह फैसला लिया गया था की फिल्म की कहानी कोठे पर आधारित होगी लेकिन एक समस्या यह थी कि गुरुदत्त ने कभी कोठा नहीं देखा था जब वह कोठे पर गए तो उन्होंने देखा कि एक कोठे पर नाचने वाली महिला गर्भवती थी लेकिन उसके बाद भी लोग उसे नचाए जा रहे थे इसको देखकर गुरुदत्त वहां पर नोटों की एक मोटी गड्डी रखकर वापस चले आए और प्यासा फिल्म में साहिर ने जो गाना लिखा था “नाज है हिंद पर वो कहां है” गुरुदत्त ने कहा कि मुझे अपनी फिल्म का सीन मिल गया है।
क्या हुआ गुरुदत्त और वहीदा रहमान के प्यार क्या ?
गुरुदत्त वहीदा रहमान से बहुत प्यार करते थे इसके कारण गुरुदत्त को उनकी पत्नी गीता दत्त घर छोड़कर चली गई थी । वहीदा रहमान हिंदी फिल्मों में काम करना चाहती थी लेकिन उनको कोई ऑफर नहीं मिल रहा था। इसके बाद गुरु दत्त ने वहीदा रहमान को अपनी आने वाली फिल्म सीआईडी में काम करने के लिए ऑफर दिया। गुरु दत्त को इस फिल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश भी थी। इसके बाद उन्होंने वहीदा रहमान के साथ प्यासा फिल्म बनाई और इस फिल्म में उन दोनों की जोड़ी को खूब सराहा गया। फ़िल्म हिट रही । इस फिल्म के साथ ही दोनों का इश्क परवान चढ़ने लगा । गीता दत्त गुरुदत्त को छोड़कर चली गई। दोनों में काफी झगड़ा हुआ था।
इधर वहीदा रहमान को लगने लगा था कि वह सिर्फ गुरुदत्त की बनकर रह गई हैं। इसके अलावा उनकी बाहर कोई पहचान नहीं है। उनको गुरुदत्त की पहचान से निकलने के लिए अपनी अलग पहचान बनाने के लिए उनसे दूर होना पड़ेगा । सुनने में यहां तक आता है की गुरुदत्त के साथ उनकी आखिरी फिल्म काग़ज़ के फूल के अंतिम सीन के सूट भी नहीं किए फिल्म को किसी तरह पूरी करके रिलीज कर दिया गया लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गई ।
लेखक सत्य शरण ने अपनी किताब में गुरुदत्त के साथ एक दशक में इस बारे में लिखा है बर्लिन फिल्म समारोह के लिए गुरु दत्त की फिल्म साहिब बीवी और गुलाम आधिकारिक तौर पर नामांकित की गई थी इस समारोह में वहीदा रहमान गुरुदत्त दोनों गए थे लेकिन दोनों में कोई बात नहीं हुई । वही दान को गुरुदत्त ना जाने कब अपनी नज़रों से उतार चुके थे । समारोह खत्म होने के बाद वहीदा रहमान लंदन चली गई । फिल्म निर्देशक
अबरार अल्वी जो गुरुदत्त के बहुत अच्छे दोस्त थे उन्होंने वहीदा को वहां के बड़े व्यापारी का पता दिया ताकि वहीदा को लंदन में रहने के दौरान कोई दिक्कत ना हो । गुरुदत्त को जब पता चला तो उन्होंने अबरार को कहा क्या इसीलिए मैंने तुम्हारा परिचय गौरीसारिआ से करवाया था । हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को उनके पास पैसे के लिए भेज दोगे । अबरार समझ गए कि गुरु दत्त ने वायदा से अपना पुराने खूबसूरत रिश्ते को दफन कर दिया है। वहीदा से वहीदा से रिश्ते की टूटन बर्दाश्त नहीं कर पाए। इसके कारण वह शराब और सिगरेट में इस कदर डूब गए
गुरु दत्त की मौत ! एक रहस्य ?
वह उस वक्त तक बिल्कुल ठीक लग रहे थे । 9 अक्टूबर 1964 को गुरुदत्त अपने भाई देवी के साथ फिल्म “बहारें फिर भी आएंगी” के सेट पर थे शूट कैंसिल होने के कारण थोड़े नाराज लग रहे थे लेकिन उन्हें इस वजह से अपना अगले दिन का प्लान बदलना पड़ा इसके बाद दोनों भाई सेट से शॉपिंग के लिए कोलाबा गए फिर शाम को पेडर रोड स्थित गुरु के अपार्टमेंट में वापस आ गए । हमेशा की तरह उसे दिन भी गुरु ने शराब पी और देर रात अपनी पत्नी को फोन करके बच्ची से मिलने के लिए कहा लेकिन गीता ने उन्हें मना कर दिया क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी। गीता की इस बात से इतने नाराज इतने परेशान हो गए कि उन्होंने अपनी पत्नी से कहा की बेटी को भेज दो वरना मेरा मुंह देखोगी इसके बाद उन्होंने अपने भाई देवी को वहां से भेज दिया ।
अगले दिन 10 अक्टूबर को अपने कमरे में गुरु दत्त मृत पाए गए इस घटना में पूरी फिल्म इंडस्ट्री को झकझोर कर रख दिया कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि 39 वर्ष की उम्र में उनकी मौत कैसे हो सकती है किसी ने इसको खुदकुशी बताया तो किसी ने दवाइयों का ओवरडोज लेने को मौत का कारण बताया।कहां यह भी जाता है कि उन्होंने शराब के साथ स्लीपिंग पीस ले ली थी जिससे उनकी मौत हो गई उनकी बहन ललिता आजमी उनकी मौत को खुदकुशी नहीं मानती थी ।
इस के साथ ही एक ऐसे प्रतिभाशाली कलाकार के युग का अंत हो गया । लेकिन भारतीय सिनेमा में गुरु दत्त का स्थान शायद ही कोई ले सके ।