Cinema 70mm / Review By ActAbhi- 2*/5* —
इतिहास में हमेशा कुछ पन्ने, ऐसे रह जाते है जो काले होने के बाद भी नजरों से ओझल हो जाते है या कर दिए जाते है। भारत में पूर्व में कई घटनाएं हुई है, जिसमे कुछ ऐसी थी जिनकी तस्वीरें देखकर रूह काँप जाती है। लेकिन दुर्भाग्य ऐसा की उस भयंकर त्रासदी को एक सामान्य दुघर्टना बता कर ,उसका सच जनता के सामने तक नहीं लाया जाता है या लाने नहीं दिया जाता । इस कड़ी में हमारे फिल्म मेकर, पत्रकारों और न जाने हर किसी ने, तमाम तरह की बात तो की पर गोधरा स्टेशन पर साबरमती ट्रेन में लगी आग की सच्चाई को सामने लाने की उसका सही सच बताने की किसी ने कोशिश तक नहीं की लगता तो ऐसा ही है।
बात करते है हाल में रिलीज़ हुई फिल्म एक्सीडेंट और कांस्पीरेसी : गोधरा (Accident or Conspiracy: Godhra) की । जैसे की नाम से ही लगता है कि इस फिल्म के मेकर्स भी आज तक जान नहीं पाए कि गोधरा में साबरमती ट्रेन में आग लगी थी या लगाई गई थी। इसलिए फिल्म के नाम में ही संदेह है तो फिल्म में क्या ही होगा ! गोधरा , साबरमती ट्रेन की आग का सच तो नानावटी कमीशन अपने निर्णय में बता चुका है ।
कहानी – गुजरात का एक परिवार है । जो अयोध्या कार सेवा के लिए अन्य लोगों के साथ जाता है। साबरमती ट्रेन में अयोध्या से लौटते समय स्टेशन मास्टर का परिवार जल कर मर जाता है। इस सदमे के कारण स्टेशन मास्टर रेल की नौकरी छोड़ कर एक कॉलेज में पढ़ने लगता है। इस कॉलेज में पढ़ने वाला एक लड़का जिसके माता पिता गुजरात दंगो में मारे जाते है। वो गोधरा और गुजरात दंगों के बारे में रिसर्च करता है। इसके बाद उसको पता चलता है की साबरमती ट्रेन में गोधरा स्टेशन पर आग लगाई गई थी ।
स्क्रीनप्ले – फिल्म की पटकथा औसत दर्जे की है। अगर इसको घटिया कहें तो ज्यादा सही होगा। जब एक ऐसे विषय पर फिल्म बनाई जा रही हो, जो काफी चर्चित और विवादास्पद रहा हो , जिसका सच जनता के सामने आने ही न दिया गया हो , तो यह उस फिल्म मेकर की नैतिक जिम्मेदारी बनती है की वो सच को तथ्यों के साथ जनता के सामने लाये। लेकिन यहाँ पर मेकर्स पूरी तरह विफल रहें है। फिल्म का स्क्रीनप्ले अधपका है । फिल्म के शुरू होते ही दर्शक फिल्म से जुड़ ही नहीं पाते है। फ़िल्म के अंत में ट्रेन जलने का सीन है और वो भी अपनी छाप छोड़ने में विफल रहा है । गोधरा के उन निर्दोष कार सेवकों के उस आग में जलने का जो दर्द था । फ़िल्म को देखकर ऐसा नहीं लगता की वो दर्द एक बार भी सामने आया होगा ।
फिल्म में कॉलेज का लड़का जब जब आता है फिल्म उबाऊ लगने लगती है। फिल्म में नानावटी -मेहता कमीशन की कार्यवाही भी दिखाई गई है । काफी घटिया स्तर से फिल्माया गया है। कमीशन की कार्यवाही का स्क्रीन जब भी आती थी वो पूरी तरह से नक़ली लगती है।केस की कार्यवाही देख कर लग ही नहीं रहा था कि किसी ऐसे केस की कार्यवाही चल रही है जिसके पीछे एक भयानक साजिश, निर्दोष कारसेवकों के आग में जलने का दर्द और एक ना भुलाने वाली घटना का सच । फिल्म का स्तर काफी निचले दर्जे का है। फिल्म के लिए रिसर्च नहीं की गई है । फिल्म को देख कर तो ऐसा लगता है । ऐसी फ़िल्मों के लिए कश्मीर फाइल से कम का स्तर नहीं होना चाहिए था ।
अभिनय – फिल्म में रणवीर शौरी, मनोज जोशी ,हितु कनोड़िआ और डेनिशा घुमरा ने मुख्य भूमिका निभाई है। फिल्म के सारे एक्टर प्रभाव हीन लगे है। कोर्ट केस की बात करें तो ऐसा लगता है कि बस टाइम पास चल रहा है । जो लड़का गोधरा पर रिसर्च करता है उसको देख कर लगता है कि वो दुखी होने का नक़ली अभिनय कर रहा है । फिल्म में सीरियल से भी कमतर दर्जे की एक्टिंग की गई है ।
निर्देशन – बात करें फिल्म फ़िल्म के निर्देशक की तो फिल्म को जिस तरह बनाया गया है उसको देख कर लगता है कि फिल्म के लेखक और निर्देशक एम के शिवाक्ष खुद ही पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं थे। फिल्म को बिना किसी रिसर्च के बनाया गया है। इसको एक अधपकी फिल्म कहें तो ज्यादा अच्छा होगा। फिल्म देखने के बाद उस दर्द को दर्शक महसूस नहीं कर पाये । फिल्म बनाने के पीछे क्या उद्देश्य था ? यह बात तो फिल्म के मेकर्स ही बता सकते है। फिल्म को देख कर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है कि फिल्म के मेकर्स साबरमती ट्रेन की आग की सच्चाई दुनिया तक पहुंचाना चाहते हैं । फिल्म का निर्देशन काफ़ी घटिया है ।
कुल मिला कर कहा जाये तो दर्शक इस फिल्म से काफ़ी उम्मीद कर रहे थे पर फिल्म ने निराश किया है ।