Samay Bhaskar / Cinema70mm / Review By ActAbhi – भारतीय सिनेमा में ऐसा कम ही देखने को मिला है कि कोई फिल्म आये और बिना शोर के दर्शकों के बीच में अपनी जगह बना ले। मगर थोड़ा सा मज़ा किरकिरा हो जाता है जब ऐसी फिल्मों को सिनेमा हॉल की जगह OTT पर सीधे रिलीज़ किया जाता है। खैर यह निर्णय तो फिल्म निर्माताओं का है। बर्लिन नाम तो सुना ही होगा ना ? जर्मनी का एक शहर ! मगर हम बात कर रहें हैं ज़ी 5 पर रिलीज़ हुई फिल्म बर्लिन की। एक ऐसी फिल्म जिसको देख कर आपको मज़ा आने वाला है। यह बात तो पक्की है। जिस तरह से इस फिल्म को बनाया गया है वो बात काबिले तारीफ है।
कहानी – फिल्म की कहानी 1993 के दिल्ली की है। फ़िल्म में उस समय दिल्ली में रुसी राष्ट्रपति भारत आने वाले होते हैं और भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों को जब पता चलता है कि रुसी राष्ट्रपति पर हमले की योजना है। उसके बाद एजेंसी इस बात के पीछे लग जाती है । दिल्ली में बर्लिन रेस्ट्रोरेंट है जहाँ पर जो लोग बोल और सुन नहीं पाते है उनको वेटर के तौर पर रखा जाता है। इसी बर्लिन रेस्ट्रोरेंट में काम करने वाले एक गूंगे और बहरे वेटर को जासूस होने के शक में ख़ुफ़िया एजेंसी गिरफ्तार करती है। पूछताछ करने में हो रही दिक्कत को देखते हुए एजेंसी वाले दिल्ली के एक साइन लैंग्वेज पढ़ाने वाले टीचर पुश्किन वर्मा को अपनी सहायता के लिए बुलाते है जो गिरफ्तार गूंगे और बहरे अशोक से पूछताछ करेगा और एजेंसी को बताएगा कि अशोक क्या कह रहा है । एक तरफ जहां साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट के तौर पर पुश्किन सरकारी एजेंसी की मदत कर रहा होता है। वहीँ दूसरी तरफ पुश्किन पर हमला होता है और उसको धमकी मिलती है कि पूछताछ के दौरान वो उनके सवालों को भी पूछे और उसकी सूचना दूसरी एजेंसी को दे । दवाब में आकर पुश्किन ऐसा करने पर राज़ी हो जाता है। मगर इस बात की भनक पहली वाली एजेंसी को लग जाती है। इस बात से जगदीश सोंदी जो इस इन्वेस्टीगेशन को लीड कर रहा है नाराज़ हो जाता है। इस बात को लेकर पुश्किन के साथ एजेंसी के लोग मार पिटाई करते है। लेकिन पुश्किन उनकी बात मानने से मना कर देता है। पुश्किन को पूछताछ के दौरान पुश्किन को पता चलता है कि अशोक निर्दोष है और एजेंसी उसको फंसा रही है।पुश्किन अशोक को निर्दोष साबित करने में लग जाता है । दूसरी एजेंसी के दो एजेंटो को सोंदी की एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया है। दूसरी एजेंसी वाले अपने एजेंट को छुड़ाना चाहते हैं। एक लड़की जो बर्लिन रेस्ट्रोरेंट में आती है उसको दूसरी एजेंसी वाले किसी कारण से ब्लैकमेल कर रहें होती है। अशोक जो बर्लिन में वेटर है। वो इस बात की तहकीकात में लग जाता है कि आखिर क्यों यह दोनों एजेंट इस लड़की को परेशान कर रहें हैं। इसी तहकीकात के चलते अशोक पकड़ा जाता है। इसके साथ ही दूसरी एजेंसी के दो एजेंट भी गिरफ्तार हो जाते हैं। इसी उलझन को सुलझाने के चक्कर में पुश्किन भी एक गहरे संकट में फस जाता है। इसी के साथ कहानी में ऐसे ऐसे ट्विस्ट आते है कि दर्शक अपनी सीट से उठ नहीं पाएंगे ।
स्क्रीनप्ले – फिल्म के स्क्रीनप्ले की बात करें तो इस बात में कोई दो राय नहीं है कि स्क्रीनप्ले को बिना किसी तामझाम के लिखा गया है। सीधी मगर रोचक। इसको ऐसे कहा जाये तो गलत नहीं होगा कि फिल्म की पटकथा लिखते समय यह ध्यान में रखा गया है कि फिल्म में अंत तक दर्शकों की रूचि बनी रहे। फिल्म का अधिकतर हिस्सा इंटेरोगेशन का है। इस इंटेरोगेशन को देख कर आप बोर नहीं होने वाले है। 1993 की दिल्ली , उस समय का जो समय था उस समय का अनुभव दर्शकों को होगा । एक बात जो खटकती है वो है जब फिल्म अपनी चाल से चल रही होती है और पुश्किन कोई सुपर हीरो तो है नहीं , जब पहली एजेंसी वाले पुश्किन को उठा कर मार पीट करते हैं और उसको बोलते है की जैसा कहा जाये वैसा ही करो। पुशिकन मना कर देता है और उसके बाद उसको बॉलीवुडिया हीरो की तरह हीरो दिखाने की कोशिश की है । जिसकी कोई ज़रूरत नहीं लगती है। जो अच्छी खासी स्क्रिप्ट में किरकिरा डाल देती है। बाकी क्लाइमेक्स की बात करें तो जिस तरह का क्लाइमेक्स दिखाया गया उससे कुछ बेहतर हो सकता था। कुछ लोगों को इसका क्लाइमेक्स पसंद भी आएगा।
अभिनय – फिल्म में अभिनय की बात करें। सभी ने अच्छा अभिनय किया है। अक्सर एक अभिनेता के अभिनय को उसके संवाद बोलने की अदायगी से परखा जाता है। उसके अच्छे संवादों पर तालियां भी खूब बजती है। लेकिन जब एक अभिनेता के पास अभिनय करते समय संवाद ही न हो तो। वहां पर अपनी बात को दर्शकों तक एक अभिनेता के तौर पर पहुंचना काफी कठिन का होता है।
अभिनय के मोर्चे पर अपारशक्ति खुराना का अभी तक का सबसे अच्छा काम है। फिल्म में पुश्किन एक साइन लैंग्वेज के एक्सपर्ट के जिस रोल को अपारशक्ति ने निभाया है वो सराहनीय है। फिल्म में इश्वाक सिंह ने अशोक का किरदार निभाया है जो की बोल सुन नहीं सकता है। उसके किरदार को बहुत ही बखूभी से निभाया है। अगर कहाँ जाये तो अभिनय के मोर्चे पर इश्वाक सिंह इस फिल्म में बाजी मार ले जाते हैं। राहुल बोस एक अच्छे अभिनेता के तौर पर जाने जाते हैं। उन्होंने अच्छा काम किया है। बाकी सभी सह कलाकार फिल्म की कहानी के अनुसार अपने किरदार से न्याय करते दिखाई दिए हैं।
निर्देशन – इस फिल्म का निर्देशन अतुल सभरवाल ने किया है। इस फिल्म को लिखा भी अतुल ने ही है। उन्होंने फिल्म अच्छी बनाई है। फिल्म का निर्देशन काफी कसा हुआ है। एक सीधी साधी शानदार फिल्म वो भी बिना तामझाम के।
फिल्म को क्यों देखें – एक जासूसी थ्रिलर फिल्म को एक अगल अंदाज और शानदार एक्टिंग के लिए देखना चाहते हैं तो यह फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए।
निर्देशन – अतुल सभरवाल
लेखक – अतुल सभरवाल ,
निर्माता – मानव श्रीवास्तव , उमेश कुमार बंसल,
अभिनेता – राहुल बोस, अपारशक्ति खुराना, इश्वाक सिंह, अनुप्रिया गोयनका, कबीर बेदी,
सिनेमैटोग्राफी- श्रीदत्त नामजोशी,
संपादन (एडिटिंग)- आइरीन धर मलिक,
प्रोडक्शन कंपनी-ज़ी स्टूडियो, यिप्पी की याय मोशन , OTT – ZEE5