Cinema 70 MM Mumbai – ActAbhi –
सत्यजीत रे भारतीय फ़िल्म जगत , चित्रकला एवं साहित्य प्रेमियों के बीच किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इनको 20 वीं शताब्दी के सर्वोत्तम निर्देशकों के रूप में गिना जाता है । 2 मई 1921 को कोलकाता के बंगाली परिवार में जन्मे सत्यजीत के करियर की शुरुआत एक चित्रकार के रूप में हुई थी । भारतीय फ़िल्म जगत में इसका बहुत बड़ा योगदान रहा है ।
इनके द्वारा कुल 36 फ़िल्में बनाई गई । जिनमें फ़ीचर फ़िल्म , डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म और शोर्ट फ़िल्में शामिल है । इनकी पहली फ़िल्म पाथेर पांचाली को 1956 के काँस फ़िल्म समारोह में Best Human Document award दिया गया । इसके अलावा अपराजितो, अपूर संसार और चारुलता जैसी कई यादगार फ़िल्में शामिल है । राय फ़िल्म निर्माण से जुड़े ज़्यादातर कार्य जैसे निर्देशन,स्क्रिप्ट राइटिंग , बैकग्राउंड म्यूज़िक , आर्ट डायरेक्शन, एडिटिंग ख़ुद ही किया करते थे ।फ़िल्म बनाने के अलावा वो एक अच्छे कहानीकार ,चित्रकार और फ़िल्म आलोचक भी थे । विश्व फ़िल्म जगत में उनका कितना नाम था इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनको लाइफटाइम एचीवमेंट का ऑस्कर पुरस्कार , ऑस्कर एकेडमी ने उनको कोलकाता के घर पर आकर दिया । कुल 11 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों सहित उनको 1992 में भारत रत्न , 1985 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 1965 में पद्म भूषण और 1975 में पद्म विभूषण पुरस्कार दिये गये हैं ।
साल 1978 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल आयोजकों ने उन्हें दुनिया के तीन ऑल टाइम महानतम निर्देशकों में से एक चुना था । वर्ष 1979 में 11वें मास्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में उन्हें सिनेमा में योगदान के लिए मानद पुरस्कार प्रदान किया गया । वेनिस उन्हें 1982 में गोल्डन लायन मानद पुरस्कार भी दिया जा चुका है । चार्ली चैपलिन के बाद वो दूसरी फिल्म से जुड़ी हस्ती हैं जिन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई थी।
अपने करियर की शुरुआत उन्होंने चित्रकार के रूप में की थी । बचपन में ही पिता की मौत हो जाने से उनका बचपन संघर्ष में बीता । उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज पढ़ाई पूरी की । उसके बाद शांतिनिकेतन का पाँच वर्षीय कोर्स बीच में छोड़ कर कोलकाता वापस आकर एक ब्रिटिश विज्ञापन एजेंसी डी जे केमर में काम करना शुरू कर दिया । इनका वेतन 80 रुपये था । इनकी मुलाक़ात फ़्रांसीसी फ़िल्म निर्देशक ज्या रेनुआ से मिलने और लन्दन में बाइसिकल चोर (Ladri di biciclette ) देखने के बाद इनका रुझान फ़िल्म निर्देशन की तरफ़ हुआ । 1949 में चिदानंद दासगुप्ता और अन्य लोगो के साथ कोलकाता फ़िल्म सोसायटी की स्थापना की जहां पर विदेशी फ़िल्मो को दिखाया जाता था ।
इन्होंने 1949 को बिजोया राय से शादी कर ली ।इनके बेटे संदीप भी फ़िल्म निर्देशक है । 23 अप्रैल को 1992 को उनका देहांत हो गया । उनके निधन पर कोलकाता शहर मानो थम सा गया हो ।
उन्होंने कई रचनाओं का लेखन किया । सत्यजीत के कई शोर्ट स्टोरीज़ प्रकाशित हुई । जो बारह बारह कहानियों के रूप में प्रकाशित हुई है । इन्होंने बांग्ला साहित्य में बच्चों के लिए दो प्रमुख चरित्रों की रचना की जिनमे जासूस फ़ेलूदा और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु बहुत प्रसिद्ध हुए ।
1943 के लगभग इन्होंने डीके राय द्वारा स्थापित सिग्नेट प्रेस में भी काम करने लगे । गुप्ता ने राय को प्रेस में छपने वाली नई किताबों के मुख्य पृष्ठ बनाने को कहा और पूरी काम करने की पूरी कलात्मक आजादी दी। राय ने बहुत सी किताबें के मुख्य पृष्ठ बनाए हैं जिसमें जिम कॉर्बेट की ” मैन ईटर आफ कुमाऊँ ” (कुमाऊं के नरभक्षी ) और जवाहरलाल नेहरू की “डिस्कवरी ऑफ इंडिया ” (भारत एक खोज )शामिल है इन्होंने बंगाल की जानेमाने उपन्यास पाथेर पंचाली के बाल संस्करण पर भी काम किया था जिसका नाम ” आम की गुठली की सिटी ” रखा और इसी उपन्यास से प्रभावित होकर राय ने अपनी पहली फिल्म पाथेर पांचाली बनाई ।
राय ने दो नए फोंट भी बनाये राय रोमन और राय बिजार राय रोमन को 1970 में एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पुरस्कार मिला था । राय ने 1982 में अपनी आत्मकथा लिखी जब मैं छोटा था । इनकी लगभग सभी कहानियां हिंदी अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है।