Cinema70mm / Review by – Actabhi – 3.5 */ 5
डर के आगे जीत है और थोड़ी कॉमेडी ! अगर आप हॉरर फिल्मों के शौकीन हैं और साथ ही कॉमेडी भी पसंद करते हैं तो यह फिल्म आपको जरूर पसंद आएगी। “मुंज्या” यह शब्द शायद आपके लिए नया हो पर शब्द काफी पुराना है। ‘मुंज्या’ मराठी शब्द ‘मुंज’ से आया है, जिसका अर्थ है महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण समुदाय में लड़के के एक निश्चित आयु प्राप्त करने पर उस पर किया जाने वाला जनेऊ संस्कार। “यह शब्द मुंज्या का संदर्भ देता है, वह लड़का जो इस संस्कार के तुरंत बाद असामयिक मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। अलौकिक ,कॉमेडी हॉरर मुंज्या स्त्री, रूही और भेड़िया के बाद Maddock फिल्म्स की चौथी फिल्म है। इसके निर्माता दिनेश विजन और अमर कौशिक हैं।
कहानी – फिल्म की कहानी कोंकण के एक मराठी परिवार की है। इसमें एक छोटा लड़का अपने से सात साल बड़ी लड़की से प्यार करता है और जब यह बात उस लड़के की माँ को पता चलती है तो वह उसको छड़ी से बहुत मारती है। हिन्दू परंपरा के अनुसार लड़के का जनेऊ संस्कार किया जाता है। लेकिन वो लड़का मुन्नी को लेकर अपनी ज़िद नहीं छोड़ता है। इसी बीच वो लड़का मुन्नी से शादी करने के लिए अपनी छोटी बहन के साथ एक जगह जाता है। जहाँ कोई नहीं जाता है। तंत्र से लड़का मुन्नी को पाने के लिए अपनी बहन की बलि देना चाहता है जिससे उसका लगन मुन्नी से हो जाये। लेकिन ऐसा नहीं होता है और वो लड़का अपनी अधूरी इच्छा के साथ मर जाता है। जिस इलाके के कहानी है। वहां पर लोक कथाओं के अनुसार अगर कोई बालक की अपने जनेऊ संस्कार के 10 दिनों के अंदर आकस्मिक मौत हो जाती है तो वो ब्रह्मराक्षस बन जाता है और अपनी अधूरी इच्छा को पूरा करने का प्रयास करता है। लेकिन वो ऐसा कर नहीं पता है। इसके बाद पूना में रहने वाले बिट्टू के पीछे ‘मुंज्या’ पड़ जाता है और इसके साथ शुरू होता है। बिट्टू और उसके परिवार में परेशानियों का सिलसिला। इसके बाद कैसे बिट्टू और उसका परिवार मुंज्या से पीछा छुड़ाते है। यह तो फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
स्क्रीन प्ले (पटकथा )-निरेन भट्ट ने कहानी का स्क्रीनप्ले अच्छा लिखा है और यह कहानी में अंत दर्शकों को बांधे रखता है। पटकथा को काफी अच्छी तरह से ऐसे बुना गया है की आप अपनी सीट से उठ नहीं पाएंगे। फिल्म में अंत तक दर्शकों की रूचि बनी रहेगी। कभी डर तो कभी हसी तो कभी जोर का झटका ।
कलाकार – जब कहानी ही हीरो हो तो फिर उसमें काम करने वाले एक्टर्स का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। फिल्म में शरवरी और अभय वर्मा ने मुख्य भूमिका निभाई है। इसमें सहायक भूमिका में मोना सिंह है। कलाकारों के अभिनय की बात करें तो अभय वर्मा ने अच्छा अभिनय किया है। उन्होंने अपना किरदार अच्छे से निभाया है। शरवरी अपने किरदार के हिसाब से ठीक ठाक रही है। मोना सिंह के साथ बाकी कलाकारों ने कहानी के अनुरूप काम किया है। कुल मिला कर एक्टिंग अच्छी की गई है।
निर्देशन – निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने फिल्म की कहानी के अनुसार चलते हुए निर्देशन किया है। ऐसी कहानियों की पहली शर्त यही होती है की कहानी का सस्पेंस कायम रखा जा सके। फिल्म में ऐसा होता दिखाई दिया है। हॉरर फिल्म अकसर भारत में कॉमेडी फिल्म बन के रह जाती है। लेकिन इस फिल्म में आपको डर भी लगेगा और हसी भी आएगी पर अपनी अपनी जगह । इस तहर के मेल को साधना वाकई कठिन होता है। लेकिन आदित्य ने इस काम को बखूबी से अंजाम दिया है। आदित्य एक भारतीय मराठी फिल्म निर्देशक और कॉस्ट्यूम डिजाइनर हैं । यह 2015 में बनी फिल्म क्लासमेट्स से चर्चा में आये है। बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म उलाधाल थी, जिसमें अंकुश चौधरी और सुबोध भावे ने अभिनय किया था।
संगीत – हॉरर फिल्म का फील इसका बैकग्राउंड स्कोर होता है। फिल्म देखते समय डर का अनुभव होना चाहिए । जो इस फिल्म में होता दिखा है। सचिन-जिगर ने हॉरर के फील को बनाये रखा है।
लेखन – योगेश चांदेकर ने इसकी कहानी लिखी है। यह कहानी लोक कथाओं पर आधारित है .
छायांकन- सौरभ गोस्वामी का है।
संपादन -मोनिशा आर. बलदावा ने किया है।
फिल्म क्यों देखें – हॉरर फिल्म के शौक़ीन अगर हॉरर के साथ मज़ेदार कॉमिक संवादों और कॉमेडी और को देखना पसंद करते है तो यह मुंज्या फिल्म आपके लिए है।